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मन में आया विचार

30 अप्रैल 2017

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बाहुबली 2: द कन्क्लूजन रिलीज हो चुकी है। भव्य और विराट फिल्म। भारतीय सिनेमा के लिये मील का पत्थर। अक्सर हमारी शिकायत रहती थी कि क्यों हमारे यहाँ फिल्र्मों में तकनीक का वृहद् प्रयोग नहीं होता है? हमारी इस शिकायत को बाहुबली ने दूर किया। एस. एस. राजामौली की कल्पनाशीलता का कोई कायल है। मैं भी हूँ। उन्होंने बाहुबली देकर भारतीय फिल्म जगत को अनमोल तोहफा दिया है। मेरा लेख का विषय है कि हमारा मन या हम किसी भव्य सिनेमा को देखकर अभिभूत हो जाते हैं, जो स्वाभाविक भी है। किंतु वही मन प्रकृति के प्रति आकर्षित क्यों नहीं होता ? क्या प्रकृति में कल्पनाशीलता की कमी है? क्या प्रकृति भव्य नहीं है? अनगिनत ब्रह्माण्ड, तारे, ग्रह, उपग्रह, पृथ्वी, महासागर, नदी, पहाड़ और न जाने कितनी विविधतापूर्ण रचनाऐं। फिर भी हम उस प्रकृति या ईश्वर के तरफ नहीं जाते जिसने ये सबकुछ बनाया। जबकि तीन घंटे की किसी भी फिल्म की ओर हम सहज ही आकर्षित हो जाते हैं। प्रकृति ने हमें सबकुछ दिया है । हमारा कर्त्तव्य है कि हम भी प्रकृति को जाने, समझें। उसका संरक्षण करें। इसके लिए समय निकालें। जब हम तीन घंटे की फिल्म की कल्पना से प्रभावित होकर उसके निर्देशक, निर्माता, अभिनेत्री, अभिनेता आदि के बारे में जानने के लिए लालायित हो उठते हैं, उनके बारे सबकुछ जानना चाह लेना चाहते हैं। फिर प्रकृति के बारे में क्यों नहीं? क्या प्रकृति किसी विराट, भव्य, कल्पनामय फिल्म से कम है? सोचें.....

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