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Ruh Ka Bhed

27 जनवरी 2023

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तेरे शहर से वो जल्दी ऊब गया,

चकाचौंध से जी घबराया होगा।


कोई उसने डाक्टरी इलाज नही की,

पीपल की छाँव याद आया होगा।


पूरे बच्चे में सीख दिखाई नहीं देती,

चावल के एक ही दाने से अंदाजा लगाया होगा।


कल बच्चे ड्राइंग में बड़े उत्सुक थे,

शिक्षक मुस्कुरा लिया होगा।


हर कक्षा में वो विद्यार्थी कमजोर रहा,

घर के कामों का हुनर होगा।


जो रहते थे उम्र भर सादगी में,

क्या रूह का भेद जान लिया होगा।


उस बुढ़े पर बच्चो की नजर गयी,

उसने बचपन फिर जी लिया होगा।


तैराकी उसकी नस-नस में थी,

मरने का गम कहाँ होगा।

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