अक्सर यह सवाल पूछा जाता है कि इतना सुनने और पढ़ने के बाद भी हमारी दुर्बलताऐं दूर क्यों नहीं होती हैं...?
हमारे मन में अनेक प्रकार की दुर्बलताएं होती हैं और यह दुर्बलताएं ही हमारे जीवन की दुविधा का सबसे बड़ा कारण बनती हैं।
इससे संबंधित चार मुख्य बातें हैं- दुर्बलता, दोष, दुर्गुण और दुख।
पहले बात करते हैं दुर्बलता की... दुर्बलताएं स्वभावगत होती हैं। प्रायः जितनी भी दुर्बलताएं होती हैं वे सब भावनात्मक होती हैं। भावनात्मक आवेग मनुष्य की दुर्बलताओं का रूप ले लेती हैं। जैसे- भय, ईर्ष्या, अभिमान, कपट या द्वेष यह सब भावनात्मक दुर्बलताएं हैं और इन दुर्बलताओं का कुछ अंश हर मनुष्य के अंदर होता है।
अब बात करते हैं दोष की... दोष प्रवृत्ति गत होते हैं। जैसे अगर किसी मनुष्य को किसी चीज़ की लत लग जाए, वह बुरे आचरण का शिकार हो जाए तो यह दोष है। जैसे किसी के बोलने का लहजा अच्छा नहीं होता, किसी के बोलने का ढंग अच्छा नहीं होता। इसे अगर आजकल की भाषा में बोलूं तो किसी के मैनर्स अच्छे नहीं होते। ये सब दोष हैं और यह दोष दिखने में आते हैं।
अब बात करते हैं दुर्गुण की... जिसका संबंध हमारी बुरी आदतों से होता है, जो मनुष्य अपने आसपास के वातावरण और संगति से ग्रहण करता है। हर मनुष्य में अलग-अलग तरह के दुर्गुण होते हैं।
अब बात करते हैं दुख की...दुख इन्हीं तीनों का परिणाम है।(दुर्बलता, दोष और दुर्गुण का) इन दुखों से मुक्ति पाने के लिए हमें अपने अंदर के इन अवगुणों को दूर करना होगा।
अब सवाल यह है कि हम अपने दुखों को दूर कैसे करें ? इसका जवाब है A फॉर अवेयरनेस। अवेयरनेस मतलब सजगता और जागरूकता. मनुष्य अपनी दुर्बलताओं, दोषों और दुर्गुणों के प्रति सजग रहें, अपने जीवन के प्रति सजग रहें, अपने काम के प्रति सजग रहे, तो हमारे अंदर ना तो दुर्बलता हावी होगी, ना दुर्गुण हावी होंगे और ना ही दोष हावी होंगे।
अब सवाल ये है कि अवेयरनेस से दुर्बलता कैसे दूर होती है ? मान लीजिए एक ऐसा व्यक्ति है जो शॉर्ट टैंपर हो, जिसे बात बात पर गुस्सा आता हो... और वह अपने बॉस के सामने खड़ा है और उसका बॉस उसे डांट पिला रहा है। लेकिन वह क्या करता है... वह उस समय अपना गुस्सा नहीं दिखाता है, बल्कि चुपचाप उनकी डांट सुन लेता है।
क्यों...? क्या उसके मन में गुस्सा नहीं आया... अरे उसे भी गुस्सा आया होगा... अब क्योंकि वह अपने जॉब के प्रति अवेयर है...इसलिए वह चुपचाप सारी डांट सुन लेगा। उसके माइंड में यह अवेयरनेस है कि अभी चुपचाप सुन लो, अगर पलट के कुछ बोलेंगे तो रोजी-रोटी भी चली जाएगी। इस संस्मरण से क्या पता चलता है यदि हम अपने अंदर अवेयरनेस रखें तो हम अपनी बड़ी से बड़ी दुर्बलताओं को हरा सकते हैं।
जो काम बॉस के सामने होता है वही काम किसी अन्य के सामने भी तो हो सकता है। जब बॉस के सामने होश में रहते हो तो फिर घर आकर अपना होश क्यों खो देते हो? इसका एक ही कारण है कि दफ्तर में तो आप अवेयर रहते हो और घर आकर सो जाते हो, लापरवाह हो जाते हो। दफ्तर में तो तुम्हें तुम्हारा लाभ दिखता है इसलिए वहां अवेयर रहते हो और घर आकर सब भूल जाते हो। यदि हर इंसान हर समय अपने हित(लाभ) को ध्यान में रखे तो उसके अंदर कोई दुर्बलता, कोई दुर्गुण या कोई दोष आ ही नहीं सकता।
इसके लिए हमें हर पल सजग रहना होगा कि यह मेरा दोष है, मुझे इसको अपने ऊपर हावी नहीं होने देना है। यह मेरे हितों को बाधित कर सकता है। हर पल इसके लिए सजग रहना होगा। हमारे अंदर एक एनर्जी बनी रहनी चाहिए।
बुराइयों को कोई अच्छा नहीं मानता लेकिन इन बुराइयों से कोई अपने आपको बचाना भी नहीं चाहता। अगर आपको लगता है कि यह बुराइयां अच्छी नहीं है तो इन बुराइयों से बचने के लिए अपने मन में अवेयरनेस होनी चाहिए।
अवेयरनेस लाने से पहले अपने अंदर एक्सेप्टेंस लाओ पहले अपनी स्वयं की बुराइयां और कमियां स्वीकार करो। ज़रा सोचिए...क्रोध जिसकी भाषा बन जाए... उसके जीवन की क्या परिभाषा होगी...
अब एक्सेप्ट तो कर लिया... अब हमें क्या करना है? हमें अपनी बुराइयों को दूर करने की कोशिश करनी है। उन्हें खत्म करके ही दम लेना है। अब देखना यह है कि हम अपनी दुर्बलता को दूर करने के लिए कितना एक्टिव हैं... कितना सजग हैं। तब हम अपने जीवन को निखार सकते हैं।
जैसे जब एक बच्चा पेंसिल से कुछ लिखता है और जब उससे कुछ गलत हो जाता है तो वह क्या करता है...वो उसको रबड़ से मिटा कर सही करता है। वह तब तक उसे मिटाता रहता है जब तक कि वह शब्द सही ना हो जाए... बस यही हमें भी करना है। हमें तब तक अपनी कोशिश नहीं छोड़नी है... जब तक कि वह बुराई और दोष हमारे अंदर से दूर ना हो जाए। यह कोशिश हमें खुद ही करनी होगी। गुरु भी हमें केवल मार्गदर्शन दे सकते हैं लेकिन उस मार्ग पर तो हमें स्वयं ही चलना होगा। अपने दोषों को दूर करने के लिए हमेशा ऐक्टिव रहो।
अब ऐक्टिव होने के बाद यह एनालाइज़ करो कि पहले के मुकाबले आपमें कितना सुधार हुआ? मान लो आपको 104- 105 डिग्री बुखार आ गया। अब आप क्या करोगे... उस बुखार को दूर करने की दवाई लोगे। अब आपने एक दिन दवाई ली और आपका बुखार अगले दिन कम होकर ९९ टेंपरेचर पर आ गया। अब क्या आप दवाई लेना छोड़ देंगे? नहीं... आप तब तक दवाई लेंगे जब तक कि आपका बुखार पूरी तरह से उतर नहीं जाता... बस यही चीज़ हमें अपनी दुर्बलताओं को दूर करने में करनी है। हमें तब तक कोशिश करते रहना है जब तक कि हम पूरी तरह से अपने दोषों को दूर ना कर लें।
तो अपने दुख दूर करने के ये चार तरीके हैं- अवेयरनैस, ऐक्सैप्टैंस, ऐक्टिवनैस और एनेलाइजेशन। जिसने इन चारों A's को स्वीकार कर लिया...समझो उसका जीवन निखर गया...!