संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण पर बयान दिया था और मात्र उस बयान के चलते ही २०१९ बिहार चुनाव में भाजपा को हार का मुँह देखना पड़ा था. हालांकि मोहन भागवत ने कुछ भी ग़लत नहीं कहा था. उनके कहने का अर्थ ये था कि आरक्षण पर संवाद होना चाहिये, आरक्षण प्रणाली की समीक्षा की जानी चाहिये. लेकिन मराठी भाषी मोहन भागवत अपने मन में मराठी में उपजे विचारों को हिन्दी में भली-भाँति समझा नहीं पाए, विरोधियों ने जानबूझकर अर्थ का अनर्थ कर डाला, संघ और भाजपा को आरक्षण विरोधी बताते हुए ये दुष्प्रचार कर डाला कि संघ के माध्यम से भाजपा देश से आरक्षण समाप्त करने की साज़िश रच रही है. और जैसा कि हम सभी ये जानते ही हैं कि हमारे देश में होने वाले प्रत्येक चुनाव में जातिगत ध्रुवीकरण की सबसे अहम भूमिका होती है, नतीजतन बिहार चुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा. उस समय नितीश कुमार महागठबन्धन के साथी थे, जो बाद में पुनः NDA के साथी बने.
दरअसल आरक्षण पर संवाद एवं समीक्षा करने की आवश्यकता से मोहन भागवत का तात्पर्य ये था कि आरक्षित वर्ग के सर्वसम्पन्न लोग एवं साथ ही ऐसे लोग जो सत्तर सालों से पीढ़ी दर पीढ़ी आरक्षण का भरपूर लाभ ले चुके हैं एवं लेते आ रहे हैं, यदि स्वयं की आरक्षण सुविधा का स्वेच्छा से परित्याग कर दें तो आरक्षित वर्ग के ही अन्य ज़रूरतमन्दों को उसका लाभ मिल सकता है.
नि:सन्देह मोहन भागवत की ये बात अत्यन्त ही विचारणीय और गम्भीर है. बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर ने उस दौरान सामाजिक असमानता और विषमता की गहरी खाई को पाटने के लिये मात्र १० साल के लिये आरक्षण व्यवस्था बनाई थी, जिसे कुछ राजनैतिक दलों और नेताओं ने अपने स्वार्थ के लिये "फूट डालो, राज करो" नीति के हथियार के रुप में इस्तेमाल किया और आज तक करते आ रहे हैं. ये कड़वी सच्चाई है कि सामाजिक असमानता और विषमता की गहरी खाई पटने के बजाए, आरक्षण की बेमेल और असन्तुलित व्यवस्था के चलते न केवल और भी अधिक गहरी हो चुकी है बल्कि आपसी द्वेष, वैमनस्यता का विकराल रुप धारण कर चुकी है. इसके लिये वो स्वार्थी राजनेता और राजनैतिक दल ज़िम्मेदार हैं जो दरअसल चाहते ही नहीं कि आरक्षित वर्ग तमाम असमानताओं, विषमताओं, विसंगतियों से बाहर निकले और उसका सर्वांगीण या चौतरफ़ा विकास हो, क्योंकि जिस दिन से ऐसा होना शुरु हो जाएगा, उनकी स्वार्थपरक राजनीती की दुकानदारी बन्द होना शुरु हो जाएगी.
यदि यही व्यवस्था अथवा प्रणाली चलती रही, समय और आवश्यकता के अनुसार इसमें महत्वपूर्ण बदलाव अथवा संशोधन शीघ्र ही न किये गए, तो मात्र कुछ सालों बाद ही ये एक गम्भीर समस्या के रुप में इतना विकराल रुप धारण कर लेगी कि फिर लाख चाहने पर भी इसका समाधान या हल निकालना नामुमकिन हो जाएगा.
यदि राजनेता या राजनैतिक दल नहीं करते तो ना सही, सर्वसम्पन्न आरक्षित वर्ग को ही स्वयं पहल करनी होगी, बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर के दिवा स्वप्न, उनके जीवन के परम ध्येय-लक्ष्य अथवा उद्देश्य को साकार करने एवं अपने ही उन भाई-बहनों-साथियों को सामाजिक स्तर पर ऊँचा उठाने तथा उनका वास्तविक अधिकार उन्हें दिलाने हेतु हाथ आगे बढ़ाने होंगे, उनके साथ कदम से कदम मिलाने होंगे, जो आरक्षण व्यवस्था के लागू होने के सत्तर साल बाद भी सही मायनों में आज तक उसके लाभ से वंचित हैं.
शिशिर भालचन्द्र घाटपाण्डे
०९९२०४००११४/०९९८७७७००८०