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-कविता-चलते चलो"चलते चलो, चलते चलोजब तक हैं प्राण चलते चलोकहती हैं मंजिल चलते चलो कहती है राहें चलते चलोफिर भी क्यूूँ रुकते मानव तुमनहीं चलते निरन्तर मानव तुम साँस