-कविता-
चलते चलो
"चलते चलो, चलते चलो
जब तक हैं प्राण चलते चलो
कहती हैं मंजिल चलते चलो
कहती है राहें चलते चलो
फिर भी क्यूूँ रुकते मानव तुम
नहीं चलते निरन्तर मानव तुम
साँसों का उद्देश्य है चलना
तन मन का उद्देश्य है चलना
चलने के लिए हो जीवित तुम
चलना ही जीवन मानो तुम
उठो, जागो और चलते चलो
जब तक न पा लो मंजिल तुम
चलते चलो, चलते चलो
जब तक हैं प्राण चलते चलो |"
- रचनाकर्ता
योगेश कुमार 'अभिनव सन्त'