विचारों की आलोचना, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ नहीं है। आप कुछ बोले, मैं इसकी आलोचना कर रहा हूँ। इसका ये मतलब नहीं कि मैं आपको बोलने से रोक रहा हूँ। बोलने से रोकना गलत है, आलोचना नहीं। अपितु यही अभिव्यक्ति की सर्वोच्च स्वतंत्रता है।
अपने आलोचकों का जवाब न देना या किसी मुद्दे पर न बोलना भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। जब तक कि आपका बोलना कानूनन तौर पर जरूरी न हो। जैसे कोर्ट में बयान या संसद में मंत्री द्वारा जवाब देना। बिना क़ानून बाध्यता आप बोलें तो बोलें, न बोलें तो न बोलें आपकी मर्जी है। मौन की आज़ादी भी अभिव्यक्ति की आज़ादी है।
बोलने की आज़ादी में कर्णप्रिय और रोचक बोलने की पूर्व-शर्त नहीं है। असल में तीखी आलोचना, आक्रामक तेवर, व्यंग्य-कटाक्ष से ही बोलने की आज़ादी की परख होती है। आलोचना किसी भी हो सकती है। आपके ईश्वर, पीर-पैगम्बर, धर्मगुरु, प्रिय नेता-अभिनेता या खिलाड़ी।
किसी की बात न सुनना उसे बोलने से रोकना नहीं माना जाता है। अतः किसी फिल्म का बहिष्कार, किसी को ट्विटर या फेसबुक पर ब्लॉक करना बोलने की आज़ादी छीनना नहीं माना जा सकता। हमें बोलने की आज़ादी है, सामने वाले को न सुनने की आज़ादी है। श्रोता का सभा से उठकर जाना अभद्रता है, फिर भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन नहीं। माइक छीनना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन है।
इसी तरह आपको बोलने का मंच उपलब्ध करवाना भी किसी की जिम्मेदारी नहीं है। कोई आपको साहित्य-सम्मेलन में नहीं बुलाता तो इससे आपकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन नहीं हो गया। चाहो तो आप उनको न बुलाओ। हालांकि सरकारी कॉलेज-यूनिवर्सिटी के प्रबंधन द्वारा इस तरह का भेदभाव, चाहे वो जेएनयू करे या बीएचयू या फिर एएमयू, गलत है।
कार्टून अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है लेकिन किसी की नग्न तस्वीर को सर्कुलेट करना नहीं। क्योंकि कार्टून व्यंग्य है, कटाक्ष है, तीखी आलोचना का तरीका है जबकि किसी का आपत्तिजनक चित्र चरित्र हरण या निजता पर आक्रमण हो जाएगा। इसी तरह किसी पर तीखा व्यंग्य लिखना, तीखे सवाल पूछना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है जबकि गाली देना, सामाजिक जीवन में गलत माने गए शब्द इस्तेमाल करना गलत है। किसी की बेहद निजी जिंदगी के बारे अफवाहें फैलाना भी चरित्र हरण है।