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बड़ा शंख

25 सितम्बर 2022

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लेखक परिचय
मेरा नाम गणेश शर्मा हैं  मैं जयपुर शहर में निवास करता हूं मेरा जन्म राजस्थान की राजधानी जयपुर की तहसील सांगानेर के एक छोटे से गांव आशा वाला में हुआ है तथा मेरे पिताजी एक मध्यमवर्गीय किसान है और खेती-बाड़ी ही हमारे परिवार में आय का मुख्य साधन है

लेख लिखने का उद्देश्य

 इस लेख के माध्यम से मैं आपको बताना चाहता हूं जीवन में अपने को मेहनत करते रहना चाहिए तथा किसी भी वस्तु को अमूल्यवान ना समझ कर मूल्यवान समझना चाहिए तथा किसी भी छोटी वस्तु को या छोटे कार्य को छोटा ना समझना चाहिए क्योंकि  छोटे-छोटे कार्यो से  मिलकर एक बड़ा कार्य हो जाता है और कभी भी यह नहीं सोचना चाहिए कि मैं किसी भी कार्य को एक बड़े स्तर से शुरू करूंगा हमेशा कम पूंजी में किसी भी कार्य की छोटे तरीके से शुरुआत करके भी आगे बढ़ा जा सकता है मेरा यह कहना नहीं है कि हमेशा किसी भी कार्य को छोटे स्तर से ही शुरू किया जाए मेरा यह लेख मध्यमवर्ग परिवार के लिए हैं जो अपने जीवन में आगे चलकर कुछ बड़ा करना चाहते हैं


लेख बड़ा शंख
एक समय की बात है एक जगह दो मित्र रहा करते थे वह दोनों गरीब परिवार से थे उनका जीवन यापन समुंदर से निकलने वाले शंखो से होता था वह दोनों मित्र रोजाना समुंदर किनारे शंख इकट्ठा करने जाया करते थे तथा उन शंखों को बाजार में बेचकर मिलने वाले पैसों से अपना तथा अपने परिवार का खर्चा निकालते थे 1 दिन क्या हुआ कि एक मित्र को एक बड़ा शंख प्राप्त हो गया यह देख कर दूसरे मित्र के मन में यह विचार आया की मैं अब इससे भी बड़ा शंख ढूंढ कर निकाल लूंगा तथा इससे भी ज्यादा पूंजी प्राप्त करूंगा और मेरे पास इससे ज्यादा पैसे रहेंगे मैं उन पैसों से हैं इससे ज्यादा पैसे वाला बन जाऊंगा वह इस लालच में आकर उसने अपने सामने आने वाले समस्त छोटे शंखों को इकट्ठा करना बंद कर दिया तथा उन छोटे-छोटे मिलने वाले शंखों को पीछे छोड़ते हुए बड़े शंख की तलाश करता रहा यह करते-करते दिन से शाम हो गई तथा शाम से रात होने लगी और उसे बड़ा शंख प्राप्त नहीं हुआ और उस दूसरे मित्र में लगातार प्रयास किया तथा उसने उन छोटे-छोटे शंखों को भी इकट्ठा किया और अपनी पोटली में रखा रात होने पर दोनों मित्र घर जाने को निकल गए तथा बीच में ही वह उन शंखों को रोजाना बेचकर जाया करते थे तथा मिलने वाले पैसों से हैं मैं अपने परिवार का राशन लेकर जाते थे उस दिन दूसरे मित्र के पास कुछ भी नहीं था क्योंकि उसने बडे  शंख की तलाश में छोटों को भी इकट्ठा नहीं किया तथा खाली हाथ घर की तरफ लौटने लगा तभी उसने देखा कि दूसरे मित्र के पास एक बड़ा शंख तथा कई अन्य छोटे-छोटेशंख हैं (यह छोटे छोटे शंख वही थे जिन्हें उसका दूसरा मित्र पीछे फेंकता जा रहा था एक बड़े शंख की तलाश में)और उनको वह जब बाजार में बेचा तो उसे प्राप्त पैसों में बड़े शंख की तुलना में छोटे शंखों के ज्यादा रुपए प्राप्त हुए तब दूसरे मित्र को आश्चर्य हुआ कि मैंने आज यह क्या कर दिया मैं किसी बड़े की तलाश में छोटों को भी फेंकता रहा या छोड़ता रहा मैंने यह कार्य बहुत ही गलत किया उसने ठान लिया कि आज के बाद में किसी भी छोटे कार्य या छोटी वस्तु को कभी भी छोटा ना समझ कर उस के माध्यम से उसको छोटे-छोटे टुकड़ों से जोड़कर एक बड़ी वस्तु बना सकता हूं तथा किसी भी कार्य की छोटे स्तर से शुरुआत कर कर उस कार्य को एक बड़े स्तर तक में पहुंचा सकता हूं जिस प्रकार आज मेरे मित्र ने छोटे-छोटे शंखों को भी इकट्ठा करके उनकी पूंजी बड़े शंख से ज्यादा प्राप्त की हैं 
लेख लिखने का उद्देश्य
इस लेख को लिखने का मेरा यह उद्देश्य रहा है कि हमें अपने जीवन में किसी भी छोटी वस्तु को छोटी समझकर नहीं छोड़ना चाहिए तथा उसे भी ग्रहण करना चाहिए और हमें मिले किसी छोटे कार्य को नकारना नहीं चाहिए और उसे जिस प्रकार पूर्ण हो सके पूर्ण  करना चाहिए क्योंकि छोटा कार्य पूरा होने पर ही हमें बड़ा कार्य मिलता है


धन्यवाद
लेखक - गणेश मेहता
जयपुर

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