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ग़ज़ल।

29 सितम्बर 2022

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ग़ज़ल  ( सियासी नियम अब पुराने हुए हैं)

सियासत को बिगड़े ज़माने हुए हैं,
सियासी नियम अब पुराने हुए हैं।

कोई खर्च करता नहीं कुर्सी पाकर,
दलालों के सब ही दिवाने हुए हैं ।

अगर चाहें हर काम कर सकते हैं हम,
न चाहें तो कितने बहाने हुए हैं ।

गरीबों की क़िस्मत में रोना तो है पर
अमीरी को हंसते जमाने हुए हैं ।

कोई मोदी, गांधी ,कोई चौबे, साहू,
रियासत के कितने घराने हुए हैं  ।

( डॉ संजय दानी )

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