अजय सिंह की लेखनी से निकलते शब्द समाज की आईना हैं जो समाज और मानवता को नजदीक से दरसाते है ! शब्द और व्यंग छोटे ही हो लेकिन अशरदार होने चाहिए जो अपनी छाप छोड़े मनोरंजन और कवितायें शभी रसो से लबालब भरे हों!
अजय सिंह की लेखनी से निकलते शब्द समाज की आईना हैं जो समाज और मानवता को नजदीक से दरसाते है ! शब्द और व्यंग छोटे ही हो लेकिन अशरदार होने चाहिए जो अपनी छाप छोड़े मनोरंजन और कवितायें शभी रसो से लबालब भरे हों!