कविता
कर्ण को जो शांति दे,वीणा का वो मधुर क्रंदन हो तुम।मेरे ह्दय बाग कि,महकती कुमुदिनी हो तुम।कुण्ठित अस्तगामी इंसान को,जो बचा सके वो पतवार हो तुम।मधु के सरस स्वभाव सी,एक मीठी अनुभूति हो तुम।कलेवर की तपिस को जो हर सके,नीर की वो शीतल बौछार हो तुम।वृहद अनुराग प्रेम की,अनुपम निशानी हो तुम।क्षुब्धा पिपासा जो