चुनावी व्यार से पूर्व रविश भाई की लेख को यक़ीनन सबने पढ़ा होगा और पढ़ना भी चाहिए जिनको देश की राजनीती में दिलचस्पी है, इधर गए तो जंगलराज उधर गए तो दंगाराज, यानी आगे कुआँ पीछे खाई?
चुनावी व्यार के बाद राजनैतिक बहार भी आई मगर जिनको यकीन था प्रदेश बदलेगा विषपान के बाद, आज की तारीख में यकीनन उनके भरोसे में कमी ज़रूर आई होगी, क्योंकि कुआँ और खाई दोनों खास मेहमान साथ साथ प्रदेश की चौखट पे दस्तक देंगे किसीको यकीन नहीं था!
रविश भाई के दृष्टिकोण को अगर समझे तो उन्होंने अपनी राय बड़े ही वेबाकी तौर पर रखी थी, मगर जनता अपने नजरिये में मुहाब्बरे तलाश रही है मगर क्यों, क्या वेबाकी से भरोसा उठ सा गया लगता है? खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे जैसी कहावत की हकीकत को अगर समझने की कोशिश करें, तो मेरे अपने नजरिये में बिल्ली जब दूध पीती है तब आँखे मूँद लेती है, और समझती है की कोई उसे देख नहीं रहा है?
जनता का नजरिया गलत हो जाये ऐसा हो नहीं सकता, जनता आँखें मूँद ले रोजमर्रे की घटनाओ से ऐसा भी मुमकिन नहीं है?तब खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे से क्या अंदाजा लगाये, की प्रदेश की जनता जो मर रही है या मारी जा रही है या फिर लूट रही है या लूटा जा रहा है, क्या इसमें जनता का भी समर्थन है?
इसमें यक़ीनन जनता का समर्थन नहीं है और न कभी होगा, मगर नजरिये में राजनैतिक विचारधारा की घुसपैठ ज़रूर उजागर होती है? समर्थन और विरोध जारी रहेगा क्योंकि लोकतंत्र तो यही कहता है!