क्या कभी भविषय में ऐसा भी समय आ सकता है की सम विषम जैसे नियम का प्रयोग इंसानो पर किया जाये?
जन्मतिथि के हिसाब से आप खाना खाएंगे, महीने की तारीख के हिसाब आज सम वाले खाएंगे तो कल विषम वाले? आज सम वाले दफ्तर जायेंगे कल विषम वाले, आज सम वाले घरों से निकलेंगे तो कल विषम वाले? आज कहा नहीं जा सकता मगर कल किसने देखा है?
वैसे यह योजना कबीले तारीफ है, सेहत के मामले में कम से कम लोगो ने हफ्ते में तीन या चार दिन तो सुबह जल्दी उठने का अपना कार्यकर्म बना लिया है! इससे एक फायदा यह हुआ की जो घंटो जाम में फंसे रहते थे सुबह सुबह आफिस जल्दी पहुँच जाते है!
सड़कों पर भीड़ कम नजर आती है, और लोगों का समय भी बचता है, कुछ लोगों ने इसका कठोरता पूर्वक जब पालन किया तो सरकार को राजस्व की कमी का आभाष हुआ, तभी समोसे और कचौड़ी पर कर का ऐलान हुआ?
सरकार को राजस्व तो चाहिए और सरकारी राजस्व में कटौती करके सरकार चलना कोई आसान काम नहीं होता, मजबूरी और ज़रूरी वक़्त बेवक़्त सब कुछ करवा ही देती है? लोकतंत्र का पैमाना है हमारी ही चुनी हुई सरकार है गलत हर वक़्त कहना मुनासिब नहीं होगा!
अंत में यही कहा जा सकता है सेहत के दृष्टि से योजना कारगर रही, आर्थिक दृष्टिकोण (वैसे दृष्टिकोण तो पत्रकारों का होता है) से सरकार घाटे में रहेगी, रोजगार के अवसर कम हो जायेंगे?
जनता के नजरिये से सम विषम फायदेमंद है, प्रचार पराशर के हिसाब से राजनैतिक दल के भी अनुकूल योजना जारी रहना चाहिए मगर वैकल्पिक व्यवस्था के साथ!