७० सालों तक लूट में राजनीती में इतनी व्यस्त रही की जनता को साफ़ पानी तक मिलना दूभर हो रहा है अब, जाँच से कतराती राजनीती और न्यायिक व्य्वस्था का ढांचा जब अब चरमरा चूका है तब जूता और लाठी ही क्या सहारा है?
"सौ टका टंच माल" और डीएनए जब पिता का दर्जा प्रदान कराती है, और बलात्कारी देश के कानून निर्माता है तब स्थिति और भी भयावह हो जाती है की जाये तो जाये कहाँ, फरियाद करें तो किससे और कोई सुनेगा कैसे?
क्या अब राजनीती में चरित्र भी बचा है जिसकी कोई हानी हो, जनता की नजरों पर से तो पर्दा कब का उठ चूका था/है बस संस्कृति का लिहाज भर था मगर वैश्विकरण का दौर है दुनिया सिमट कर टेबल पर आ गई है? जब दुनिया भर के राजनेताओ के आंतरिक चर्चे आम है तो कोई खाश कहाँ बचा रह गया है?
सर्वाजनिक जीवन में जो सच पहले छुप जाती थी या इसे इस तरह भी कह सकते है की आम चर्चा नहीं होती थी अब होने लगी तो क्या अब इशारा साफ़ समझे की राजनीती भी चरित्रवान होनी चाहिए और अच्छे चरित्र वाले लोग ही इसमें शिरकत करें?
अगर नहीं तो चर्चा से शिकायत नहीं होनी चाहिए?
http://www.hindi.indiasamvad.co.in/Politics/girl-dancing-in-mla-champions-office-11182