आज़ादी के लगभग ७० साल हो गए और इस सत्तर सालों में अधिकतर समय देश की सत्ता पे काबिज एक ही परिवार और एक ही राजनैतिक पार्टी का कब्ज़ा रहा! आज हाशिये पे है देश की जनता क्या नौकरशाह, क्या बेरोजगार क्या कामगार क्या वयापारी परिशानी का आलम यह है की देश में जानता परेशान है कोई शक या सुबह हो तो तस्सल्ली की जा सकती है? जानता के हाशिये पे होने का अंदाजा तो इसी बात से लगाया जा सकता है की खुश कौन कहाँ है? क्या अल्पसंख्यक समुदाय खुश है या बहुसंख्यक खुश है, निम्न वर्ग खुश है या ऊंच वर्ग खुश है या फिर माध्यम वर्ग खुश है? एक बंटवारा १९४७ का और उसके बाद का बंटवारा सत्ता के लिए देश के हुकुमरानों का हिन्दू, मुस्लिम सिख, ईसाई, जाट, पात, धर्म दलित समाज, अनुसूचित समाज, अनुसूचित जनजाति समाज इतने बंटवारों के बाद भी कोई भी वर्ग आज खुशहाल नजर नहीं आ रहा है? खुशहाल अगर कोई नजर आ रहा है तो राजनैतिक समाज/वर्ग और उनके चेले चपेटे क्या देश इनकी ख़ुशी के लिए मेहनत करता है? जनता की कमाई और जनता के पैसों की लूट का एक ऐसा ढांचा बना है जिसमे राजनीती और उनके चेले चपेटे वर्ग का ही महल तैयार होता है! बाकियों को तो कफ़न की चादर भी नसीब हो जाये तो देश के इन लूटेरों का शुक्रिया अदा करते हुए इस ख़ुशी ख़ुशी इस जहां से रुक्सत कर जायेंगे!