दोस्त बनाता हूँ
रहता हूं किराये की काया मेंरोज़ सांसों को बेच कर किराया चूकाता हूंमेरी औकात है बस मिट्टी जितनीबात मैं महल मिनारों की कर जाता हूंजल जायेगी ये मेरी काया ऐक दिनफिर भी इसकी खूबसूरती पर इतराता हूंमुझे पता हे मे खुद के सहारे श्मशान तक भी ना जा सकूंगाइसीलिए जमाने में दोस्त बनाता हूँ