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दोस्त बनाता हूँ

18 सितम्बर 2015

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रहता हूं किराये की काया में रोज़ सांसों को बेच कर किराया चूकाता हूं मेरी औकात है बस मिट्टी जितनी बात मैं महल मिनारों की कर जाता हूं जल जायेगी ये मेरी काया ऐक दिन फिर भी इसकी खूबसूरती पर इतराता हूं मुझे पता हे मे खुद के सहारे श्मशान तक भी ना जा सकूंगा इसीलिए जमाने में दोस्त बनाता हूँ
ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

"इसीलिए जमाने में दोस्त बनाता हूँ".............बहुत खूब !

18 सितम्बर 2015

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