असहिष्णुता कहीं गुलाम भारत के मार्ग से होते हुए आज़ाद भारत में तो प्रवेश नहीं किया है. इस पर एक सवालिया निशान इसीलिए भी लगता है? क्योंकि, देश की राजनीती ने जिस अंदाज में उनके और INA साथ वर्ताव किया है इसमें कही न कहीं कुछ न कुछ तो घालमेल है जो की गुप्त/परम गुप्त दस्तावेज के देश के सामने उजागर होने से प्रतीत होता है?
मामला अगर यहीं थम जाता तो शिकायत नहीं रहती इसके बाद भी भारत के एक और प्रधानमंत्री भी इसके शिकार हो गए, अज्ञात सूत्रों की माने तो परिस्थितियां भिन्न ज़रूर थी मगर अंजाम एक और देश भी वही?
क्या एक महान स्वंतन्त्रा सेनानी, उनके सहयोगी INA की फ़ौज और पूर्व प्रधानमंत्री के साथ देश और देश की राजनीती का वर्ताव क्या स्वीकार्य है? देश और देश वासियों के साथ ऐसी असहिष्णुता को क्या लोकतंत्र सवीकार करेगा?