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बरवै रामायण

16 दिसम्बर 2020

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*🌺भाग - १🌺*

🌿बरवै रामायण🌿

*प्रातःस्मरणीय गोस्वामी श्रीतुलसीदासजी महाराज का यह छोटा - सा ग्रन्थ ' बरवै रामायण ' है । बरवै रामायण के ६९ छन्दों को देखने से स्पष्ट हो जाता है कि गोस्वामी तुलसीदासजी की यह स्फुट रचना है और छन्दों को क्रम देनेका काम पीछे किसी ने किया है । बालकाण्ड के छन्दों में पहिले श्रीजानकीजी का वर्णन करके जानकी विवाह की चर्चा के पश्चात् श्रीराम के शैश्वका वर्णन करने वाले छन्दों को रखनेकी अपेक्षा श्रीराम के शैशव का वर्णन करके तब श्रीजानकीजी का वर्णन एवं उनके मिलन की चर्चा करने का क्रम अधिक युक्तियुक्त जान पड़ता है । अतः श्रीगोस्वामीजी की अनुभवयुक्त अमृतमयी वाणी का अध्ययन करके लाभ उठावें ।*


🌿बालकाण्ड🌿


*बड़े नयन कुटि भृकुटी भाल बिसाल ।*

*तुलसी मोहत मनहि मनोहर बाल ॥ १ ॥*


गोस्वामी तुलसीदासजी कहते हैं कि ( बालक श्रीराम के ) नेत्र बड़े - बड़े हैं , भौहें टेढ़ी हैं , ललाट विशाल ( चौड़ा ) है , यह मनोहर बालक मनको मोह लेता है ।

*कुंकुम तिलक भाल श्रुति कुंडल लोल ।*

*काकपच्छ मिलि सखि कस लसत कपोल ॥ २ ॥*


अयोध्या के राजभवन की स्त्रियाँ कहती हैं - सखी ! श्रीराम के ललाट पर केसर का तिलक है , कानोंमें चंचल कुण्डल हैं और बालों से मिलकर गोल - गोल गाल कैसे सुशोभित हो रहे हैं ।


*भाल तिलक सर सोहत भौंह कमान ।*

*मुख अनुहरिया केवल चंद समान ॥ ३ ॥*

मस्तक पर तिलक की रेखा बाण के समान शोभा दे रही है और भौंहें धनुष के समान हैं । मुख की तुलना में तो अकेला ( पूर्णिमा का ) चन्द्रमा ही आ सकता है ।


*तुलसी बंक बिलोकनि मृद मसकानि ।*

*कस प्रभु नयन कमल अस कहौं बखानि ॥ ४ ॥*


तुलसीदासजी कहते हैं कि श्रीराम की चितवन तिरछी है , मन्द - मन्द मुसकान उनके ओठों पर खेल रही है । प्रभु के नेत्रों को कमल के समान कहकर कैसे वर्णन करूँ , ( क्योंकि ये नेत्र तो नित्य प्रफुल्लित रहते हैं और कमल रात्रिमें कुम्हला जाता है । )

*चढ़त दसा यह उतरत जात निदान ।*

*कहौं न कबहूँ करकस भौंह कमान ॥ ५ ॥*


( श्रीरामकी ) भौंहों को मैं कभी भी कठोर धनुष के समान नहीं कहूँगा ; क्योंकि उस धनुष की दशा यह है कि वह एक बार ( शत्रु के साथ मुठभेड़ होने पर ) तो तन जाता है और अन्त में ( काम होने पर - प्रत्यंचा से हाथ हटा लिये जाने पर क्रमशः ) उतरता जाता ( ढीला कर दिया जाता ) है ( इधर प्रभुकी भौहें कोमल हैं तथा सदा बाँकी रहती हैं )।


*काम रूप सम तुलसी राम सरूप ।*

*को कबि समसरि करै परै भवकूप ॥ ६ ॥*


_ तुलसीदासजी कहते हैं कि ऐसा कौन कवि है , जो श्रीराम के स्वरूप की तुलना कामदेव के रूप से करके ( इस अपराध से ) संसाररूपी कुएँ ( आवागमन के चक्र ) - में पड़ेगा ।

*शेष अगले भाग में..*

🌺 *जय जय सियाराम* 🌺

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