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बेटी द्वारा पिता को नसीहत (पंजाबी लघु कथा) सबक

8 सितम्बर 2022

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बेटी द्वारा पिता को नसीहत (पंजाबी लघु कथा) 

 सबक 

 बलकार एक फैक्ट्री में काम करता था लेकिन अतीत से वह बुरी संगत में पड़कर शराब पीने लगा और अपने कर्तव्यों की उपेक्षा करने लगा। उसकी बुरी आदतों के कारण उसकी पत्नी को काम के सिलसिले में लोगों के घर जाना पड़ता था और इन्ही कारणो के कारण उसकी बेटी की पढ़ाई अधर में ही छुट गई थी। लड़की पढ‌ने में बहुत होशियार थी लेकिन माता-पिता की मजबूरी के चलते उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ा। वह भी अपनी मां के साथ काम करने के लिए लोगों के घर जाने लगी। जब वह काम करने के लिए गली से लोगों के घरो में जाती थी तब वह बच्चों को स्कूल जाते देख बहुत दुखी होती थी। उसकी माँ भी कुछ नहीं कर पा रही थी क्योंकि उसके पिता को बुरी आदतों के कारण फैक्ट्री से निकाल दिया गया था और वह गुरजीत की कमाई को छीन कर शराब पर खर्च कर देता था।  

          एक बार बलजीत पड़ोस में एक नए घर में काम करने गई। मकान मालकिन बहुत दयालु और अच्छे स्वभाव वाली महिला थी और समाज सेवा गतिविधियों में योगदान देती थी। उन्होंने कुलबीर को न पढ़ाने का कारण पूछा। गुरजीत ने रंजीत को सारी कहानी सुनाई। रंजीत के पूछने पर कुलबीर ने आगे पढ़ने की इच्छा जताई। रंजीत ने कुलबीर को नई किताबें लाकर दी। इस तरह कुलबीर दुबारा ध्यान लगाकर पढ़ने लगी लेकिन एक दिन जब कुलबीर स्कूल जाने के लिए तैयार हुई तो उसकी किताबें कमरे में नहीं थीं। कुलबीर ने अपनी मां से किताबों के बारे में पूछा परंतु उसे किताबों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली। उसके पिता ने रद्दी में किताबें बेचकर शराब पी ली थी। कुलबीर अपने पिता को सबक सिखाना चाहती थी लेकिन उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। अंत में वह रोते हुए रंजीत के पास चली गई और पूरी बात बताई। रंजीत ने कुलबीर को ढांढस बंधाया और फिर नई किताबें लाकर दी और पिता को सबक सिखाने का फार्मूला भी बताया। 

           कुलबीर ने रंजीत आंटी के अनुसार अपने फॉर्मूले पर काम करने लगी। वह प्रतिदिन सुबह गाती थी 'पापा जी तुम खूब पिओ शराब, मैं फिर से लुगी एक नई किताब' बहुत दिन उसकी इस तरह की बातें सुनते हुए एक दिन उसके पिता कुलबीर ने उसे घुरते हुए पूछा कि वह किस के बारे में बात कर रही है। 'पापा बहुत पीओ शराब , मैं लूंगी .... किताब' बात क्या है मुझे बताओ। कुलबीर ने धैर्यपूर्वक कहा कि आप जो प्रतिदिन शराब पीते हैं मैं उस शराब की खाली बोतल को संभाल कर रखती हूँ और जब मेरे पास बहुत सारी बोतले हो जाएगी तो मैं उन पैसो से नई किताबें खरीद लुंगी। 

            कुलबीर की यह बात सुनकर बलकार का सारा नशा काफुर हो गया और उसने कुलबीर को अपने पास बुलाकर प्यार किया। सुबह कुलबीर के बिस्तर पर, कुलबीर के उठने से पहले नई किताबें, कापी और पेंसिलें थीं। यह देखकर उसने अपने पिता बलकार को गले लगा लिया। सबकी आंखों में आंसू थे। बलकार ने एक नया नारा दिया 

'पापा जी ना पीओ शराब, मुझे ले दो एक किताब'

लेखक हरप्रीत सिंह मो: 09992414888,
 

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