यह प्रश्न अनादि काल से मनुष्य को विचार करने पर विवश करता रहा है. अनेक विचारकों , दार्शनिकों ने इसका उत्तर देने का प्रयत्न किया है. उपनिषदों में इस प्रकार इसको व्यक्त किया गया है तत्वमसि श्वेतकेतु अर्थात तुम वही हो श्वेत्केतू. इसका क्या मतलब हुआ . इसे समझने के लिए हमें स्वयं से ही यह प्रश्न पूछना होगा और वहीँ से उत्तर भी आएगा . दूसरों के उत्तर काम न आयेँगे.
Bipin