shabd-logo
Shabd Book - Shabd.in

Dharmraj Singh की डायरी

Dharmraj Singh

7 अध्याय
0 व्यक्ति ने लाइब्रेरी में जोड़ा
0 पाठक
निःशुल्क

 

dharmraj singh ki diary

0.0(0)

पुस्तक के भाग

1

भाई

21 जनवरी 2018
0
0
0

आब तो आप नजीर के रूप में पेश किये जाते हैं___जैसे सीतारामसिंह नें राधेमोंहनसिंह के साथ किया था__वाह_वाह मैकाले वाह आप नें तो एक अच्छी परम्परा अपने पीछे छोड दिया,कम से कम वो दोहरायी तो जा सकती है।

2

इन्सानियत

21 जनवरी 2018
0
0
0

इन्सानियत हमारे अपनो में होती ।तो आज हम दुनियां में सबसे बीस होते ।।न खोते सम्पदा अपनी ।न हम ब़हसी न ख़ब्बीस होते।। अच्छाइसयां अपने में थीं फिर भी अच्छे नहो सके हम ।बुराइयों यूं ही घुसते चले गये हम।।

3

भाई

21 जनवरी 2018
0
0
0

भाई मैं तेरे संग में रहता था सब कुछ तेरा सहता था। तुम मरी रोटियां खा गये और बदले में तानें खिला गये।। अपने को ऊँचा बता गये। और हमको निचा दिखा गये।। पर ऊंचा कौन विचारों से यह प्रकृति ने दिखलाया है।... छमाँ हमारी परम्परा है ।... जा मैने तुझको छमाँ किया है ।।

4

आज की कुडियां

27 जनवरी 2018
0
0
0

दो नंबर की हैं आज कल की कुडी।मीठा - मीठा बोल के चलाती हैं छूरी. घुण्टे ना गला मर जायें वो खुदी।।दो नम्बर ……......…...……....., बिन की लगा के फांसी मरती हैं वो जा कर झांसी।वीरांगना कहलाती हैं।। दो नम्बर…..................................अपनें तो परलोक जाती हैं। घरवालों को जेल करवती है।। दो नम्बर….....

5

नयक

4 फरवरी 2018
0
0
0

खलनायक नहीं नायक हूँ मै। जुल्मी नहीं सुखदायक हूँ मैं।। नफरत होती है क्या मुझे क्या खबर । बस यारों मुहब्बत के लायक हूँ मै।। दोस्ती का जुनूं है हमारे जिगर।दुसश्मनी अभी तक तो हमनें निभाई नहीं।।

6

अज़नवी

4 फरवरी 2018
0
1
0

कभी-कभी मैं खुद को. अज़नवी लगता हूँ. कभी - कभी खुद को खुद से पूँछता हूँ. क्या मैं वाक़ई में मैं हूँ या फिर किसी वाक़िया का हिस्सा. मेरे इस वाक़ये में बाँश तो कम हैं बाँश के टुकड़े हैं ज्यादा. बाँश से ख़तरा नहीं है उतना जितना कि उसके टुकड़ों से है . हमें बाँश को नहीं बाँश के टुकडों को खा़क़ में मिलन

7

धैर्य से

19 अप्रैल 2018
0
0
0

होयें ना मायूश यूं शामकी तरह ढलते रहिये। जिन्दगी भोर है सूरज की तरह निकलते रहिये।। एक ही पाँव पर ठहरो गे तो थक जाओ गे। धीरे - धीरे ही सही राह पर चलते रहिये।।

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए