""यू मत पूछो मेरी बेबसी को ,बस यादों के जख्म लिए बैठे है
उम्मीदे तो बहुत थी उसे, मुझसे , बस नादान बने बैठे है ""
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गांव के बाहर एक शिव मंदिर है ,जो लगभग २०० वर्ष पुराना है ,मैं अपन दोस्तों के साथ
वहा खड़ा था ,तभी वहा पर रमा(रमला) का आना हुआ ,,दिन सोमवार था तो आज ज्यादा
भीड़ भी रहती है ,,जब मैंने उसे देखा तो बस देखते ही रह गया ,देखते ही एक शेर याद
आया """""तुझे देखते ही होश खो बैठा ,,,क्या लाजबाब हुश्न था मैं ,,मैं बहोश हो बैठा ""
अब जैसे ही सोमवार आता ,मैं पहले से ही वहा उसके इंतजार में खड़ा रहता ,ऐसे करते -करते कई सोमवार निकल गए ,पर कुछ कहने कि हिम्मत न हुई ,,पर उसे पता हो गया कि मैं उसे देखता हू
'मेरे दोस्तों न कहा कि अरे तुम साले पागल हो जाओगे ,और रमा को कुछ कह भी नही पाओगे ,और
समय बीत जागा इन्तजार में ही ,,सो उनके कथनानुसार मैंने भी हिम्मत जुटाई,,और जैसे ही वह मंदिर से निकली और मैं बगल में हो लिया ,,बहुत हिम्मत दिखा कर मैंने कह दिया कि रमा एक बात कहनी है ,,उसने कहा ,,हा बोलो ,तो मैंने कहा ,,""तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो ,आई लव यू """,,,,पर उसने बिना कोई जवाब के आग बढ़ गई ,,अब मन में संसय होने लगा कि कही इसने घर पर बता दिया तो सिर पर एक भी बाल नही बचेंगे ,,खैर शाम तक इसी कस्मकस में दिन बीत गया ,और कुछ भी नही हुआ और डर भी दूर हो गया ,,लगभग १० दिनों बाद एक उसने मुझे पत्र दिया उसमे यही था कि मैं भी आपको आपके कहने के पहल से ही चाहती हू ,पर मैं कह न सकी ,,
ये सिलसिला धीरे- धीरे चलता रहा ,,चिट्टी -पत्रों के माध्यम से ,इस बीच मेरी छुट्टियाँ भी बीत गई और मैं फिर बाहर चला गया ,,ऐसा करते-करती १० माह निकल गए पर मैं उस भुला नही,,,,,परिक्षाओ के बाद मई-जून कि फिर छुट्टियाँ हो गई ,फिर मैं गांव पंहुचा ,, इस बीच मुझे य भी नही मालूम कि प्यार क्या होता है .मैं इन सब बातों से बिल्कुल अनजान था ,बस ये समझो कि ये मेरा लड़कपन था ,जो कि दोस्तों कि उकसाई हुई आग में कूद पडा था !
रमा से से फिर चलते - फिरते कई बार बातचीत हो जाती पर कभी फुरसत में या कभी एकांत म मिलकर बात न हो पाती ,इसके लिए मैं तो बेचैन तो था ही पर रमा को भी उतनी ही चाहत मुझसे मिलन कि थी ,,फिर एक दूर गांव में एक मेला लगता है ,जो मेरे गांव से लगभग ६ या ७ किलोमीटर है ,दोनों वहाँ जाने को तैयार हो गए ,, वो भी अपनी सहेलियों के साथ मेला दखने गई .मैं भी दोस्तों क साथ गया ,,अब यहाँ गांव के लोग नही थे !थे भी तो भीड़ में पहचाने कौन ,फिर हम दोनों पास के एक आम का बहुत बढ़ा बगीचा था वहाँ चले गए ,,पहली बार हमने एक - दूसरे को जी भर कर देखा ,घंटो बात किये ,,एक-दूसरे को बाँहों में भर कर चूमा ,,बस ये कह लो कि एक दूसरे को छोड़ ही नही पा रहे थे ,,उस दिन तो ऐसा लगा कि हमने सब कुछ पा लिया ,,काफी समय हो गया था सो हम मेले में वापस चले गए ,,शाम को घर भी वापस आ गए ,,,फिर भी मैं अभी तक उसकी भावनाओं को समझने में असमर्थ था ,मैं प्यार कि परिभाषा नही जानता कि प्यार क्या होता है ,,ये तो बस ऐसे चाल रहा था कि समय बिताने क लिए करना है कुछ काम ,,,,,,,,,,,,,,,
धीरे-धीरे समय बीतता गया ,,और एक दिन उसका सन्देश आता है कि मैं तुमसे मिलना चाहती हू ,,,समय लगभग रात को ७:३० पर हल्का अँधेरा हो जाता है ,मैं गया ,वो भी आई ,,और आते ही रोने लगी ,मैंने कहा हुआ क्या है ये तो बता ,,पर वह रोंने के आगे मान ही नही रही थी ,,तब उसने बताया कि मेरे घर वाले मेरी शादी करने जा रहे है ,,,तुम मुझे यहाँ से ले चलो ,,
इतना सुनते ही ,""""""मुझे काटो तो खून नही""""""",,,,मैं इस सोच में पड़ गया कि मैं तो अभी पढ़ रहा हू ,कोई नौकरी या काम-धंधा भी नही ,,मैं इसे कहा लेकर जाऊ ,,क्या खिलाऊंगा ,क्या पहनाऊंगा ,,,मेरे बड़े भाई कि अभी शादी भी नही हुई ,,,बहुत सारे सवाल मेरे दिमाग में घूमने लगे ,,मैं काफी टेंसन में हो गया ,,,,,,,,पर मेरी हिम्मत न हुई कि इसे कहा लेकर जाऊ ,,ऊपर से माँ-बाप ,,,समाज का डर ,,पर मैं इन बंधनों को न तोड़ पाया ,,,मैं डर-ही-डर में समय निकाल दिया,,,,
फिर वापस पढ़ाई के लिए जाना पडा ,और मैं चला गया ,,अगली बार फिर छुट्टियों २ मई को आया तो पता चला कि उसकी शादी ९ मई कि है ,,पर पता नही मैं क्यों मजबूर था जो उसका साथ न दे पाया ..उसकी बारात भी आई और चली भी गई .मैं मूक दर्शक कि भांति देखता ही रह गया ,और मैं अपने -आप को ठगा सा देखता रहा ,और वह दिल्ली चली गई ,,,अब तो मुलाकात नही होती कभी दिख जाती तो मैं ही काफी शर्म महसूस करता और नजरे चुराने लगता ,,,,,पर उसने एक ही बात कही कि शायद किस्मत वालो को मिलता है ,प्यार के बदले प्यार ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
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