प्रदुषण से मुक्ति जिम्मेदारी है सबकी, फिर छूट की आदी जनता और वोट बैंक की प्यासी राजनीती इमदाद पर क्यों उतारू है?
प्रदुषण से जनता को फर्क नहीं पड़ता या सियासत अपने आपको लाचार महसूस कर रही है एक शख्त कानून बना कर दिशा निर्देश देने में? वोट बैंक के क़र्ज़ के बोझ तले दबी सियासत भी अपना फ़र्ज़ फूंक फूंक कर निभाती है?
सम-विषम का तर्क एक शुरुआत है, भले ही इसमें अधिकतर लोगो को छूट मिल गई हो सिर्फ गिनती के कुछ कार चालक है जिनको इस विषम परस्थितियों का सामना करने पड़ेगा आने वाले दिनों में!
८ से ८ तक की पाबन्दी से पहले और बाद में इसका फायदा उठाया जा सकता है, अगर इससे भी काम न बने तो पुरानी दिल्ली का फार्मूला अपनाइये शख्त कानून के अभाव में?
धर्म लोगो को असहाय बना देती है और वोट बैंक राजनीती को , धर्म से आगे की ज़िन्दगी और वोट बैंक से आगे की राजनीती की शुरुआत कब होगी यह वाकई में एक कौतुहल का विषय होगा देश के सामने?
दोनों का अपने अपने क्षेत्र अपना ही रुतवा है और इन दोनों के आगे विवस है इंसान बदले तो क्या बदले कैसे बदले?