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चल समर का जयघोष करना दुखी हो न शोक करना सोच कुछ भृकुटी चढ़ा अपनी भुजा तू प्रचंड करचल समर का जयघोष करइस समर का तू भीम हैभुज तोड़ करता छिन्न हैगर्जन से तेरे कांपता इस विश्व का हर निम्न हैजो धर
ये चिरइया तो उड़ चली नए नीड़ को मुड़ चली एक आस लिए कुछ खास लिए नूतन जीवन का प्यास लिए उत्कृष्ट क्रिया से जुड़ चली ये चिरइया तो उड़ चली आजाद है कोई ना टोकेगा कोई पिंजड़ा अब ना रोकेगा अनं