ये चिरइया तो उड़ चली
नए नीड़ को मुड़ चली
एक आस लिए कुछ खास लिए
नूतन जीवन का प्यास लिए
उत्कृष्ट क्रिया से जुड़ चली
ये चिरइया तो उड़ चली
आजाद है कोई ना टोकेगा
कोई पिंजड़ा अब ना रोकेगा
अनंत आसमान का आंचल उसको
उत्पतन भाव से जोड़ेगा
उम्मीदों के पंख पसारे वो उड़ चली
नए नीड़ को मुड़ चली
ये चिरइया तो उड़ चली...
दिवाकर पाण्डेय