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फरकिया

24 सितम्बर 2015

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featured imageपत्रकार Pushya Mitra की किताब ‘फ.र.कि.या.’ बिहार के कोसी के एक खास इलाके की मुकम्मल पड़ताल है | जिसके साथ राजा टोडरमल ने भी फरक किया | आज के हुक्मरान भी फरक कर रहे हैं | इसी फरक को अपनी किताब ‘फ.र.कि.या.’ के जरिए जानने की कोशिश की है लेखक ने | कोसी बांध के अन्दर और बाहर बसे लोगों का इलाका | इसी इलाके में लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान का गांव परसबन्नी भी है | सांसद महबूब अली केशर और दिनेश चन्द्र यादव जैसे नेताओं का भी इलाका है | बाढ़ से त्रस्त लोग इसे अपनी नियति मान चुके हैं इसलिए उन्हें बाढ़ और बरसात अच्छा लगता है | क्योंकि उन्हें कम से कम मीलों धूल भरी सड़कों पर चलना नहीं पड़ता और नावें नहीं बदलनी पड़ती | कभी रेल पुल पर संकट तो कभी सड़क पुल पर | अभी सड़क पुल टूट गया है तो जनता ने नदियों में नावों को खड़ा करके पुल तैयार कर लिया | पुराना रेल पुल जर्जर है लेकिन जनता तोड़ने नहीं दे रही | क्योंकि वो सड़क पुल का काम कर रहा है | अभावों के भीतर उम्मीद की जिन्दगी | इस किताब को अंजाम तक पहुँचाने के लिए लेखक ने एक दिन में मोटरसायकिल से 100-100 किलोमीटर की यात्रा की है | चूँकि ऐसी यात्रा हमने भी थोड़ी बहुत की है इसलिए मुझे लेखक की मेहनत पर कोई शक नहीं है | इस इलाके में मोबाइल नेटवर्क की समस्या भी बहुत मजेदार किस्म की है | इस किताब में बदला और धमहरा घाट स्टेशन और वहां के दूध व्यापारी की मनमानी का जिक्र भी हुआ है | आम धारणा के विपरीत लेखक ने भी स्वीकार किया है कि साधन के अभाव में यह उनकी मज़बूरी है | इस इलाके में लोग अपनी बेटी की शादी नहीं करना चाहते | बाढ़ के समय में एक ही नाव पर पूरा परिवार रहता है अपनी तमाम सामजिक मर्यादाओं के साथ | जिन्होंने इसे नहीं देखा है उनके लिए इसकी व्यावहारिक कल्पना मुश्किल है | मुख्य धारा से कटे होने के कारण यह अपराधियों की शरणस्थली भी है | डीएसपी सतपाल सिंह में इसी इलाके में मारे गए | अपराधियों दवरा जमीन पर कब्जे और वर्चस्व की लड़ाई की कहानी भी चर्चे में रहती है | लेखक ने इस इलाके में भक्ति संगीत की एक लोक धारा भगैत की चर्चा की है | वे लिखते हैं कि संभवतःयह इसी इलाके की खोज है जो कई बार सूफी संगीत पर भी भारी पड़ती है | भले ही यह इलाका पिछड़ा हुआ हो लेकिन लेखक की नजर मे यह ‘मस्ती की बस्ती’ है | यहाँ कण-कण में संगीत है जीवन का उत्सव है | हरेक उत्सव के लिए अलग-अलग गीत है | बाढ़ के बीच फसें हैं तब भी कोसी माई का गीत है | अभाव में भी गीत है उल्लास में भी संगीत है | इस फरकिया से सबको रूबरू कराने के लिए लेखक को धन्यवाद | सारे जीवंत फोटो Ajay जी ने खींचे हैं जो इस क्षेत्र को गहराई से समझते हैं ।

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पत्रकार Pushya Mitra की किताब ‘फ.र.कि.या.’ बिहार के कोसी के एक खास इलाके की मुकम्मल पड़ताल है | जिसके साथ राजा टोडरमल ने भी फरक किया | आज के हुक्मरान भी फरक कर रहे हैं | इसी फरक को अपनी किताब ‘फ.र.कि.या.’ के जरिए जानने की कोशिश की है लेखक ने | कोसी बांध के अन्दर और बाहर बसे लोगों का इलाका | इसी इलाके

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