जब भी मैं,याद दिलाता हूँ;पुराने वादे
उसके चेहरे पे नागवारी.....साफ दिखती है।।
वफ़ा का दौर नहीं है,ये है फरेब-ए-वफ़ा
लडकियाँ कहाँ ,कहीं अब पाक-साफ़ मिलती हैं।।
कैसे समझाये "अनुज",नासमझ दीवाने को
आज कल कहाँ किसी को;शीरी,हीर मिलती है।।
अभयतोष कुमार गिरि।
आगे फिर कभी...