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फिर कभी

13 अप्रैल 2016

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जब भी मैं,याद दिलाता हूँ;पुराने वादे

उसके चेहरे पे नागवारी.....साफ दिखती है।।

वफ़ा का दौर नहीं है,ये है फरेब-ए-वफ़ा

लडकियाँ कहाँ ,कहीं अब पाक-साफ़ मिलती हैं।।

कैसे समझाये "अनुज",नासमझ दीवाने को
आज कल कहाँ किसी को;शीरी,हीर मिलती है।।
अभयतोष कुमार गिरि।
आगे फिर कभी...

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