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ग्लोबल वार्मिंगः तप रही धरती

14 अप्रैल 2024

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 वर्तमान में ग्लोबल वार्मिंग विश्व भर में एक बहुत बड़ी समस्या बन कर उभर रही है। यह एक अन्तराष्ट्रीय समस्या है। धरती के वातावरण का तापमान लगातार बढ़ ही रहा है। प्राक्रतिक आपदाओं का सिलसिला भी बढ़ रहा है और मौसम में भिन्नता देखने को आजकल बहुत मिल रही है । समुद्र का बढ़ता स्तर तो लग रहा है कि कहीं कई देशों को दुनिया के नक्शे से न मिटा दे।  

वैश्विक तापमान के बढ़ने की शुरुआत देखें तो 1750 के औद्योगिक क्रांति के दौरान हो चुकी थी। इस समय लोंगों ने कोयले का भरपूर इस्तेमाल किया जिससे वातावरण में कार्बनडाईऑक्साइड बढ़ा। जनसंख्या के लगातार बढ़ने के कारण शहरीकरण‚ प्रौद्यौगिकी का उपयोग और कारखानों की संख्या भी तेजी से बढ़ी।
जिसके कारण वैश्विक तापमान में लगातार बढ़ोत्तरी हुई। 1970-80 के बीच में पृथ्वी के तापमान के बढ़ने को ग्लोबल वार्मिंग नाम दिया गया।  पृथ्वी सूर्य की किरणों से गर्मी प्राप्त करती है और ये किरणें वायुमंडल से गुजरती हुई पृथ्वी की सतह से टकराती है और फिर वहीं से परावर्तित होकर पुनः वापस लौट जातीं है। धरती के वायुमंडल में कई गैंसे है‚ जिनमें कुछ ग्रीनहाउस गैंसे भी है। इनमें से अधिकतर धरती के उपर एक प्राकृतिक आवरण बना लेती हैं। यह आवरण वापस लौट रहीं कुछ किरणों के हिस्से को रोक लेता है। इस प्रकार यह धरती के वातावरण को गर्म बनाये रखता है। लेकिन ग्रीन हाउसों गैंसों में लगातार बढ़ोत्तरी होने से यह आवरण और भी अधिक मोटा हो जाता है। यह आवरण सूर्य की किरणों को ज्यादा मात्रा में रोकने लगता है। इस प्रकार ग्लोबल वार्मिंग का आगाज हो जाता है। इस ग्लोबल वार्मिंग की प्रमुख वजह मनुष्य है। आजकल कई कारखाने‚ बिजली व हवाई जहाज बनाने वाले संयत्र‚ उघोग धन्धें व बेतहाशा बढ़ते प्रदूषण से अनेक ऐसी गैसें उत्सर्जित होती हैं और यह गैंसों का आवरण सूर्य की किरणों को अधिक से अधिक रोकने लगती है। गाड़ियों से निकलने वाला धुआं भी इसके लिये बहुत दोषी है। आज चारों तरफ बड़ी-बड़ी बहुमंजिला इमारतें व औद्योगिक स्थल बन रहें है। जिसके लिये जंगल बहुत तेजी से कट रहें है। जिसके कारण कार्बन डाईऑक्साइड गैसों का अवषोषण नहीं हो पाता । पेड़-पौधे कार्बन डाईऑक्साइड गैस को ग्रहण कर ऑक्सीजन छोड़ते है और प्राकृतिक रुप से वातावरण को संतुलित करते है। परन्तु जंगल की अंधाधुंध
कटाई से यह संतुलन बिगड़ रहा है। इसके अलावा सूर्य की हानिकारक अल्ट्रावॉयलट किरणों को रोकने वाली ओजोन परत का भी क्षरण बहुत तेजी से हो रहा है। जिसके फलस्वरुप वातावरण का तापमान बहुत गर्म हो रहा है। ओजोन परत सूर्य से निकलने वाली घातक पराबैंगनी अर्थात अल्ट्रावॉयलेट किरणों को धरती पर आने से रोकती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस ओजोन परत में एक बड़ा छिद्र हो चुका है जिससे ये घातक पराबैंगनी किरणें सीधे धरती पर आ रहीं हैं। इसके अलावा जीवाश्म ईधन के जलने पर कार्बनडाईऑक्साइड पैदा होती है और ये धरती को लगातार गर्म कर रहीं है। विश्व में हर जगह बिजली
की ज्यादा से ज्यादा जरुरत बढ़ती जा रही है। इसलिये इसका अधिक से अधिक उत्पादन करने के लिये जीवाश्म ईंधन के जलने पर कार्बन डाईऑक्साइड पैदा होती है जो ग्रीन हाउस गैसों के प्रभाव को बढ़ा देती हैं। इसका नतीजा ग्लोबल वार्मिंग के रुप में सामने आता है।  

यदि जल्द ही कोई उपाय नहीं किया गया तो अगले दो दशकों में धरती का तापमान 0.3 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक की दर से बढ़ेगा। आज जलवायु में बड़ी तेजी से परिवर्तन हो रहा है। अभी बहुत गर्मी‚ फिर थोड़ी देर में ठंडक या बिन मौसम बारिश कोई ठिकाना नहीं । इस पल -पल बदलते मौसम से लोग जल्दी-जल्दी बीमार तो होते ही हैं हमारी फसलों को भी भारी नुकसान होता है। इसी तरह तापमान में बढ़ोत्तरी होती रहेगी तो मनुष्य.पेड़ पौधे. जीव जन्तु सभी त्रस्त होकर तबाह हों जायेंगे। मनुष्य पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ेगा । लोग कई संक्रामक बीमारियों के शिकार होंगें । मलेरिया. डेंगू यलो फीवर आदि ज्यादा गर्मी में होने वाले रोग है। स्वच्छ पानी. स्वच्छ वायु सभी के लिये लोग तरस जायेंगें। गर्मी कम
करने के लिये लोग बिजली के उपकरण इस्तेमाल करेंगें जिससे और ज्यादा बिजली ज्यादा खर्च होगी और फिर और भी ज्यादा ग्लोबल वार्मिंग का खतरा बढ़ेगा। 

ग्लोबल वार्मिंग की वजह से ही भारत और कई देशों में हमें प्राकृतिक आपदायों का कहर देखने को मिला है। इजराइल के एक शोधकर्ता ने दावा किया है कि प्रत्येक डिग्री सेल्यिस गर्मी में बढ़ोत्तरी बिजली कड़कने की प्रक्रिया 10 फीसद बढ़ा देगा। इस सदी के अंत तक देश का औसत तापमान 5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है। इन सबका असर कृषि उत्पादन पर भी बहुत पड़ेगा। गेंहू. कपास. सब्जियों का उत्पादन सबसे ज्यादा प्रभावित होगा। जिस पर अधिकतर किसान निर्भर है। जनवरी 2011 में पुणे के एक रिसर्च के एक रिसर्च की स्टडी में बात की चेतावनी दी गयी कि सन् 2050 तक की हरियाली वाले कई क्षेत्र रेगिस्तान में बदल जायेंगें। गर्मी का मौसम काफी लंबा हो जायेगा‚ ये दिन काटे नहीं कटेंगें। 

ग्लोब्ल वार्मिंग की वजह से हिमालय के ग्लेशियर अब तबाही की कगार पर है। ये ग्लेशियर धीरे-धीरे पिघल रहें है। रिसर्च में पाया गया है कि दुनिया भर में बढ़ते प्रदूषण व जंगलों के कटान से सन्
2030 तक भारत में हिमालय के ग्लेशियरों पर काफी असर पड़ सकता है।ल  ये पिघलते हुये ग्लेशियर आने वाले समय में बहुत बड़ी समस्या खड़ी कर देंगें। जानकारों का कहना है कि इससे धीरे-धीरे नदियों का जल स्तर बढ़ जायेगा और हिमालय से निकलने वाली नदियों का स्त्रोत ही सूख जायेगा। ग्लेशियरों से पिघलने वाली बर्फ से समुद्र में जल स्तर बढ़ जायेगा जिससे प्राकृतिक तटों का कटाव शुरु हो जायेगा
और धीरे-धीरे एक बड़ा हिस्सा डूब जायेगा। जिससे समुद्री इलाकों में रहने वाले काफी लोग बेघर हों जायेंगें। वैज्ञानिक कहते है कि 1880 के बाद औसत समुद्र तल 8 इंच तक बढ़ा है 3 इंच की बढ़ोत्तरी तो बीते 25 सालों में हुई है। जल स्तर बढ़ने की वजह से समुद्र के किनारे वाली आबादी समुद्र में समा जायेगी। इसका असर पूर्वी भारत के सुन्दर वन में देख सकते है। इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता को इसी कारण लोग दूर ले जा रहें है‚ क्यूंकि ये डूब रही है। फिजि का एक गांव बढ़ते जलस्तर के कारण पुर्नवासित करना पड़ा । यह प्रशांत महासागर का पहला ऐसा द्वीप था। इसी तरह दुनिया के सबसे छोटे देशों में टुवालु देश की स्थिति और भी खराब है। 

ग्लोबल वार्मिंग से सारी दुनिया त्रस्त है। दुनिया भर के वैज्ञानिक इस विषय पर बहुत चिन्तित है और इसे रोकने के लिये काफी प्रयास कर रहें है। लेकिन इस ओर बड़े स्तर पर काफी तेजी से प्रयास करने
की आवश्यकता है। इसके लिये तो सबसे पहले हानिकारक गैंसों के उत्सर्जन व धुयें को कम करना होगा। इसके लिये पेट्रोल डीजल और बिजली का उपयोग कम करना चाहियें। वाहनों व कारखानों से निकलने वाले विषैले धुंये पर प्रतिबंध लगाना होगा। इसके साथ जंगलों को कटने से रोक कर और भी अधिक से अधिक पेड़ पौधे लगायें। बिजली के अनावश्यक प्रयोग पर पांबदी लगनी चाहिये। आवश्यकता न होने पर बिजली के उपकरण स्विच ऑफ कर देने चाहिये और उर्जा बचाने वाले उपकरण ही प्रयोग करने चाहिये। लोगों को अपने वाहनों का कम से कम प्रयोग कर सार्वजनिक वाहनों या शेयर करके वाहनों का प्रयोग करना चाहिये। हम अपने घर व घर के आसपास के वातावरण का स्वच्छ बनाये रखना चाहिये। कूड़ा करकट घर के आसपास न इकट्ठा करें और वस्तुओं को बेकार न फेंककर रिसाइलिकिंग यानि पुन प्रयोग करने पर जोर दें। 

हमें ग्लोबल वार्मिंग पर गंभीरता से विचार कर उसे रोकने के लिये कुछ ठोस कदम उठाये जाने की बेहद आवश्यकता है वरना वह दिन दूर नहीं जब सारा विश्व धरती के बढ़ते तापमान की भट्ठी में झुलस कर तबाह हो जायेगा। हमें लोगों को इसके बढ़ते खतरे के बारे व इससे बचने के बारे में जागरुकता अभियान चलाना होगा। सभी देशों को एकजुट होकर इस गंभीर समस्या से निपटने के बारे में विचार विमर्श कर उन उपायों पर शीघ्रताशीघ्र अमल में भी लाना होगा तभी धरती को ग्लोबल वार्मिंग जैसे भयावह संकट से बचाया जा सकता है।  

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