गोरक्षा पर बड़ी बड़ी बाते एवम् बहस निरंतर चलती रहती है लोग मरने मारने को तत्पर रहते है अक्सर महानगरो में जब आप शाम को निकले तो यह दृश्य सामन्यतः गाये एवम् बछड़े सर्द रातो में भी कचरे के ढेर पर पॉलीथिन खाते एवम् रात बिताते मिलगे ।जबकि शहरो में कांजीहौस एवम् गोशालाओं की भरमार होती है और ऐसे संस्थानों को सहायता राशि एवम् अनुदान करोड़ो में मिलता क्या कारण कि ब्यवस्था रहते भी गोधन् इससे वंचित रहता है एवम् बहस का मुद्दा अधिक बनता है ?
शेष फिर