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ग्वालियर में मराठा साम्राज्य के जनक - बाजीराव पेशवा

27 जनवरी 2015

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इतिहास, कई सारी महान सभ्यताओं के उत्थान और पतन का गवाह रहा है। अपने दीर्घकालीन इतिहास में हिंदू सभ्यता ने दूसरों द्वारा अपने को नष्ट करने के लिए किये गये विभिन्न आक्रमणों और प्रयासों को सहा है। यद्यपि इसके चलते इसने वीरों और योद्धाओं की एक लंबी शृंखला उत्पन्न की है, जो दूसरी प्राचीन सभ्यताओं से अपनी मातृभूमि की रक्षा करने के लिए समय-समय पर उठ खड़े हुए हैं। भारत के इतिहास में एक ऐसे ही महान योद्धा और हिंदू धर्म के संरक्षक के रूप में प्रख्यात नाम है- १८वीं शताब्दी में उत्पन्न बाजीराव पेशवा। बाजीराव की सबसे बड़ी सफलता महोबा के नजदीक बुंगश खान को हराना था, जिसे मुगल सेना का सबसे बहादुर सेनापति माना जाता था, और उसे तब परास्त किया जब वह बुंदेलखंद के वृद्ध हिंदू राजा को परेशान कर रहा था। बाजीराव के द्वारा प्रदान की गई इस सैन्य सहायता ने छत्रसाल को हमेशा के लिए उनका आभारी बना दिया। यह कहा जाता है कि छत्रसाल मोहम्मद खान बुंगश के खिलाफ बचाव की मुद्रा में आ गए थे, तब उन्होंने निम्न दोहे के माध्यम से बाजीराव के पास एक संदेश भेजा था : जो गति भई गजेंद्र की, वही गति हमरी आज।बाजी जात बुंदेल की, बाजी रखियो लाज ॥ जब बाजीराव को यह संदेश प्राप्त हुआ तब वह अपना भोजन ग्रहण कर रहे थे। वह भोजन छोड़कर तुरंत उठ खड़े हुए और घोड़े पर सवार हो गए। यह देखकर उनकी पत्नी ने कहा कि कम-से-कम आप भोजन तो ग्रहण कर लें और तब जाएँ। तब उन्होंने अपनी पत्नी को उत्तर दिया, "अगर देरी करने से छत्रसाल हार गये तो इतिहास यही कहेगा कि बाजीराव खाना खा रहा था इसलिए देर हो गयी।" वे यह निर्देश देते हुए कुछ सैनिकों को लेकर तुरंत निकल गये कि जितनी जल्दी हो पूरी सेना पीछे से आ जाये। जल्दी ही बुंगश को हरा दिया गया और तब छत्रसाल ने खुश होकर मराठा प्रमुख को अपने राज्य का एक तिहाई हिस्सा प्रदान कर दिया। बाजीराव के द्वारा मुगल बादशाही को विध्वंसक रूप से तोड़ने और ग्वालियर के सिंधिया राजवंश (रानोजी शिंदे), इंदौर के होल्कर (मल्हार राव), बड़ौदा के गायकवाड़ (पिलजी), और धार के पवार (उदयजी) के रूप में अपने जागीरदार स्थापित करने के द्वारा मराठा राज्यसंघ को भव्य रूप में स्थापित किया गया। मुगल, पठान और मध्य एशियाई जैसे बादशाहों के महान योद्धा बाजीराव के द्वारा पराजित हुए। निजाम-उल-मुल्क, खान-ए-दुर्रान, मुहम्मद खान ये कुछ ऐसे योद्धाओं के नाम हैं, जो मराठों की वीरता के आगे धराशायी हो गये। बाजीराव की महान उपलब्धियों में भोपाल और पालखेड का युद्ध, पश्चिमी भारत में पुर्तगाली आक्रमणकारियों के ऊपर विजय इत्यादि शामिल हैं। बाजीराव ने ४१ से अधिक लड़ाइयाँ लड़ीं और उनमें से किसी में भी वह पराजित नहीं हुए। वह विश्व इतिहास के उन तीन सेनापतियों में शामिल हैं, जिसने एक भी युद्ध नहीं हारा। कई महान इतिहासकारों ने उनकी तुलना अक्सर नेपोलियन बोनापार्ट से की है। पालखेड का युद्ध उनकी नवोन्मेषी युद्ध रणनीतियों का एक अच्छा उदाहरण माना जाता है। कोई भी इस युद्ध के बारे में जानने के बाद उनकी प्रशंसा किये बिना नहीं रह सकता। भोपाल में निजाम के साथ उनका युद्ध उनकी कुशल युद्ध रणनीतियों और राजनीतिक दृष्टि की परिपक्वता का सर्वोत्तम नमूना माना जाता है। एक उत्कृष्ट सैन्य रणनीतिकार, एक जन्मजात नेता और बहादुर सैनिक होने के साथ ही बाजीराव, छत्रपति शिवाजी के स्वप्न को साकार करने वाले सच्चे पथ-प्रदर्शक थे।

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