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हमसफ़र

16 अक्टूबर 2021

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मेरे हर दर्द की दवा हो,
तभी मेरे हर सफ़र में हमसफ़र हो,

मेरा आधा अंग हो,
मेरा सिंदूर हो,
मेरा अभिमान हो,
मेरा जीवन हो,

मेरे हर ज़ख्म का मरहम हो,
तभी मेरे हर सफ़र में हमसफ़र हो,

मेरी खुशी हो,
मेरी बंदगी हो,
मेरी इबादत हो,
मेरी जान हो,

मेरी बेड़ियों की आज़ादी हो,
तभी मेरे हर सफ़र में हमसफ़र हो,

मेरे जीवन का अनुपन सागर हो,
मेरे लफ़्ज़ों के अल्फ़ाज़ हो,
मेरे केनवास की कविता हो,
मेरे जिस्म की रुह हो,

मेरे श्रृंगार का आइना हो,
तभी मेरे हर सफ़र में हमसफ़र हो |

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