रंगमय उमंग है कलम की स्याही में
ह्रदय मेरा कुंचित है एकान्त ग्राही में
विचार विद्वान विधित धन धान्य हूँ मैं प्रसन्नता इस मत से, पीड़ा ह्रदय में
ह्रदय मेरा कुंचित है....
हर्ष पर्व की प्रातः शाम है उदय अस्त में प्रतीत चिंतन से मेरी क्रिया क्यों निद्रा में छटकते अश्रु की पुकार गुलाल बिरखा में
नैत्र प्रवाह से लाभ क्या व्यथा ही व्यथा में ह्रदय मेरा कुंचित है....
निरंतर ज्वलंत बाधाएँ प्रेम की रचना में तत्पश्चात भी अभिलाषा उग्र तन मन में
है उपेक्षित मस्तिष्क मेरा चंग बजंग में उथल-पुथल काया शब्दों के जंजाल में
ह्रदय मेरा कुंचित है....
जीवन्त आश है प्रेम रस की विषधारा में
स्नेह हस्त से कपोल रंगीत विभिन्न रंग में विचलित बारम्बार तन-मन तन-मन कुंठा में प्रेयसी दर्शन मात्र को तरसे नैनन उत्साह में ह्रदय मेरा कुंचित है एकान्त ग्राही में ||
पंकज मेघवाल
"बनजारा"