''एक आदमी का मोल इतना भर रह गया है कि वह अभी क्या है और उसका तुरत-फुरत क्या इस्तेमाल किया जा सकता है. उसे एक वोट, एक संख्या, एक सामान के रूप में देखा जाता है. किसी इंसान को कभी एक दिमाग की तरह तवज्जो नहीं दी गई. एक ऐसी खूबसूरत शय जिसे सितारों ने अपनी धूल से पैदा किया. हर जगह यही हो रहा है, चाहे पढ़ाई हो, चाहे सड़क, राजनीति और यहां तक कि जीने और मरने में भी...''