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जामवंती मसि

28 सितम्बर 2021

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मैंने चंदन वंदन और अभिनंदन गीत नही गाया

मैंने चूड़ी रोली माहुर कंगन गीत नही गया

जब भारत माँ जख्मी हो भारत के क्रूर कपूतों से

तब भारत माँ रोती है भारत के वीर सपूतों से

जिनको करनी थी अगुआई चूड़ी पहने बैठे हैं

कूटनीति की चालों में माँ को उलझाये बैठे हैं

इक गोली उत्तर गर गोलों से दाग दिया होता

तो काश्मीर की घाटी पर आतंकी घात नही होता

उठो लाल शावक सुत अब तुम और ना देरी कर देना 

छूट ना देना दुश्मन को पहले रणभेरी कर देना

मैं कलम सिपाही कलम चला कुछ गीत सुनाने आया हूँ

मैं जामवंत हूँ भारत के हनुमंत जगाने आया हूँ ।


माँ की चूनर पर खतरा अब साफ दिखाई देता है 

मां के मुख से क्रंदन स्वर अब साफ सुनाई देता है

जो खुद को शेर समझते कहते दिल्ली के दरबारों में

उनकी आशा एक बनी तश्वीर छपे अखबारों में

जिनको आंख दिखानी थी उनसे समझौता कर बैठे

आंगन में शत्रू के जाकर शेर नपुंसक बन बैठे

धाती माँ की छाती पर अब खून दिखाई देता है

जिसमें भाव दिखे क्रेता के भारत का विक्रेता है

आजादी भारत माँ के बेटों की ही अगुआई थी

रंग बसंती चोले वाली गूँज व्योम तक छाई थी

मैं कलम प्रभाकर बना धरा का तिमिर हटाने आया हूँ

मैं जामवंत हूँ भारत के हनुमंत जगाने आया हूँ ।


गालों पर गाल लगाने वाले पन्ने ना पलटायेंगे

खून का बदला खून रहेगा समझौते ना आयेंगे

जब भारत माँ जख्मी हो और समझौता आ जाता है

असल बात है तब भारत माँ का आँचल फट जाता है

खुद को शेर कहाते हो तो गुर्राना भी सीखो तुम

दुश्मन के मुख में हाथ डाल उल्टी करवाना सीखो तुम

खुद ही आग लगा बैठे हैं चंदन वन कि क्यारी को

बने बागवां लूट रहे गुल से फूली फुलवारी को

भारत माँ के बेटे पर जब लिपट तिरंगा आता है

तब भारत का संसद घर पूरा नंगा हो जाता है

मैं शब्दों की आस बना ये व्योम झुकाने आया हूँ

मैं जामवंत हूँ भारत के हनुमंत जगाने आया हूँ ।


                 हरिओम "भारतीय" बरौर 

                     18/09/2021

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