हंसी मजाक,,, और जंगली भूतों से संबंधित यह कहानी एक बार अवश्य पढ़िए गा,,,।।। जंगली आत्माएं,,, भाग 1,,,, रेनू अजी सुनते हो,,, घर में लकड़ियां खत्म हो चुकी हैं,,, तो मैं क्या करूं,, पूरे दिन घर में बैठे रहते हो अरे कम से कम पास के जंगल से कुछ लकड़िया ही लेकर आ जाओ। हे भगवान,,, उस जंगल में वर्षों से कोई गया नहीं और तुम चाहती हो मैं उस जंगल से तुम्हारे लिए लकड़ी लेकर आओ,,, हां वैसे भी खेतों में अब लकड़ीया मिलती कहां है। और घर में भी कोई काम तो तुम करते नहीं,, तो क्यों ना तुम लकड़ियां ही लेकर आ जाओ। देखो मैंने तुम्हारे लिए कुछ भोजन भी बांध दीया है भूख लगे तो रास्ते में खा लेना,, महेंद्र पाल जो एक किसान है और शायद अपनी पत्नी का अच्छा आज्ञाकारी दास भी है। महेंद्र पाल चलो बेटा अब मान भी जाओ,,, वरना पत्नी शाम को भोजन नहीं देगी। मन ही मन अपनी धर्म पत्नी को चार गालियां देते हुए महेंद्र पाल घर से बाहर निकल आया। तभी उसका दोस्त बिरजू महेंद्र को पुकारता है,,, अरे भैया महेंद्र कहां की तैयारी हो रही है,,, और ऐसे चुपके-चुपके कहां जा रहे हो। अरे बिरजू भाई बहुत अच्छा हुआ आप मिल गए,,, वे क्या है कि मुझे एक सन्यासी बाबा मिले थे,,,,और उन्होंने मुझे एक सोने चांदी से भरा संदूक का पता बताया है बस उसी को लेने जा रहा हूं। खजाने से भरा संदूक,, अब महेंद्र की बात सुनकर बिरजू के कान खड़े हो गए,,, और आंखों में लालच की चमक चमचमआने लगी। अरे महेंद्र भाई सच में,,, हां बिरजू भाई भला मैं तुमसे मजाक क्यों करूंगा,,, अच्छा वे गोपाल और भोला कहीं दिख नहीं रहे ये दोनों कहां है। अरे महेंद्र भाई यहीं कहीं होंगे पर आपको उनसे क्या काम,, अरे काम है ना, मैं कुछ समझा नहीं,,, अरे मैं समझाता हूं ना। देखो जिस सन्यासी ने मुझे इस धन से भरे संदूक के बारे में बताया है,,,, उन्होंने कहा था बेटा धन काफी अधिक मात्रा में है,,,और उस धन को उठाने के लिए कुछ विश्वासी लोगों को अपने साथ लेकर जाना। इसीलिए मैं गोपाल और भोला को ढूंढ रहा हूं। इतने बड़े संदूक को मैं अकेला उठाकर गांव तक ला नहीं सकता,,, इसीलिए साथियों को ढूंढ रहा हूं। महेंद्र की बात सुनकर बिरजू फटाक से बोल पड़ा,,, अरे महेंद्र भाई चिंता काहे कर रहे हो मैं भी साथ चलता हूं जितने ज्यादा लोग होंगे उतना ही अच्छा होगा। ठीक है भाई लेकिन पहले ही बता देता हूं संदूक को खोजने के लिए हमें पूरे जंगल का भ्रमण करना पड़ सकता है। अरे कोई बात नहीं वह सब तो हो जाएगा,,, ठीक है तो चलो कुछ ही दूर चलने के बाद बिरजू को गोपाल और भोला दिखाई देते हैं। और बिरजू गोपाल भोला के पास दौड़ते हुए जाता है,,, और सारी बात बता देता है। गोपाल भोला भी अब महेंद्र के साथ-साथ चलने लगते हैं,,, चारों अंधेरी वन के अंदर प्रवेश करते हैं,,,, हालांकि डर भय सभी के मन में था,,, परंतु लालच इंसान से कुछ भी करा सकता है। लालच के आगे भला किसी को खतरा कहां दिखता है। बिरजू भोला गोपाल तो अपनी ही दुनिया में खोए हुए थे,, सभी आपस में चर्चा कर रहे थे धन के बंटवारे को लेकर। और एक तरफ,,, महेंद्र मन ही मन हस रहा था। तभी भोला डरते-डरते कहने लगा अरे महेंद्र भाई सच में इसी जंगल में वह संदूक है,,,,हां भोला पर तुम इतना डर क्यों रहे हो अगर तुम्हें पैसा नहीं चाहिए तो वापस चले जाओ,,, मैं खुद उस पैसे से भरा संदूक ढूंढ लूंगा। अरे नहीं नहीं महेंद्र भाई आप तो मेरी बातों से नाराज हो गए,,हम तो सच्चे मित्र हैं और एक मित्र दूसरे मित्र का साथ कहां छोड़ता है। महेंद्र मन ही मन कहने लगा साले,,,, चने के झाड़ में चढ़ा रहा है,,, रुक बेटा देता हूं तुझे ढेर सारा धन। ठीक है तो,, अब मेरी बात ध्यान से सुनो,,, सन्यासी ने मुझे सिर्फ इतना बताया है कि धन इसी जंगल में है,, पर कहां है यह मुझे नहीं बताया। बस मुझे एक चिन्हित जगह तक जाने के लिए कहा है,, उस जगह पर एक तालाब है और उस तालाब के चारों तरफ कमल के फूल होंगे वही हमारी मंजिल है। बिरजू लेकिन इतने बड़े जंगल में हम उस तालाब को आखिर ढूंढे तो ढूंढे कहां,,, बिरजू देखो मैंने पहले ही कहा है अगर तुम्हें भी नहीं आना तो मत आओ मैं अकेला ही उस तालाब को खुद ही ढूंढ लूंगा। अरे नहीं महेंद्र भाई,,, हम ढूंढते हैं ना ठीक है तो जल्दी से ढूंढो,,, धन की चाह में बिरजू गोपाल भोला बड़ी शिद्दत से पूरे दिन भर जंगल में भटकते रहे,,, लेकिन सुबह से शाम हो गई तालाब कहीं नजर नहीं आया। अब तो थक हार कर भोला कहने लग महेंद्र भाई तालाब तो कहीं नजर नहीं आ रहा अब तो देखो रात भी होने को आई,,, और रात को इस जंगल में रहना ठीक नहीं है। भोला की बात सुनकर,,, महेंद्र पाल मन ही मन ठहाके मारकर हंसने लगा,,, कितने मूर्ख हैं साले जब तालाब होगा तभी तो मिलेगा। बड़ी ही चतुराई से महेंद्र प्रताप भी चेहरे में निराशा के भाव लाते हुए बोल,,, ठीक है आज नहीं मिला तो क्या हुआ कल मिलेगा वैसे भी कड़ी मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती। इतना कहकर महिंद्र ने पास में गिरा एक सूखा पेड़ अपने कांधे में उठा लिया,,,, और लंबे कदमों के साथ गांव की ओर लौट आया। महिंद्र के तीनो दोस्त निराशा हताशा और खाली हाथ,,,, महिंद्र के पीछे-पीछे चल रहे थे। जल्द महेंद्र अपने घर के आंगन में पहुंच जाता है,,, और लकड़ी आगन में पटक कर,, बिरजू से बोलता है देखो मित्र धन से भरा संदूक जंगल में है इस बात का पता हम चारों में से किसी और को नहीं लगना चाहिए,,,, नहीं तो हम से पहले कोई और हमारा धन हम से चुरा लेगा। अब महेंद्र के तीनों दोस्त महेंद्र के झांसे में पूरी तरह फंस चुके थे,,, हां ठीक कहां महेंद्र भाई ने हम इस बात का पता किसी को नहीं चलने देंगे इतना कहकर भोला गोपाल और बिरजू अपने घर की तरफ लौट कर चले जाते हैं। 😀➖😀➖😀➖😀➖😀 तो आगे क्या होगा,,, क्या बिरजू गोपाल भोला,,, महिंद्र की झूठ का पर्दाफाश कर पाएंगे,,,, या फिर महेंद्र इन तीनों को जंगल घुमा-घुमा कर अधमरा कर देगा। यह सब जानना बड़ा ही दिलचस्प होगा,,, तो मिलते हैं दूसरे भाग में।