मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी है जिसे ईश्वर ने वाणी द्वारा अपने भावों को अभिव्यक्त करने का सामर्थ्य प्रदान किया है जबकि अन्य सभी प्राणी अपने भावों को व्यक्त नहीं कर पाते हैं। प्रत्येक प्राणी को अपनी रुचि के कार्यों को करने में ही आनंद प्राप्त होता है; मनुष्य भी उनमें से ही एक है।
जिस कार्य में आपकी रुचि है उसे ही आप आनंदपूर्वक करते हैं अन्यथा जीवन में नीरसता घुल जाती है। कई बार लोग अपना कार्य अथवा जीवनवृत्ति पारिवारिक सदस्यों या किसी मित्र के परामर्श अथवा दबाव में चुन लेते हैं जो उनके लिए आजीवन नीरसतापूर्ण कार्य बन जाता है। उदाहरण के लिए किसी व्यक्ति की यंत्र-संबंधी कार्यों में रुचि है किंतु किन्ही कारणों से वह चिकित्सक बन जाता है। यद्यपि चिकित्सक के रूप में वह अपना कार्य तो करेगा किंतु उसे वह चिकित्सकीय कार्य उतना आनंद नहीं देगा जितना आनंद वह अभियांत्रिक के रूप में प्राप्त करता।
अंततः इस लघु लेख का निष्कर्ष यही कि आप अपने जीवन में कुछ भी करें किंतु अपनी रुचि की जीवन-वृति चुनें जिससे आपकी यह जीवनवृत्ति ही आपकी अभिरुचि बन जाए और आप अपने सामर्थ्य का संपूर्ण अपने कार्य को दे सकें।
बस यही है जीवन की आनंदमयी सार्थकता।