shabd-logo

जीवन समर्पण

25 सितम्बर 2022

47 बार देखा गया 47

एक बेटी कई बाधाओं के बाद मां के भ्रूण से मां की गोद में आती है ,उसके आने पर सबसे ज्यादा खुशी अगर किसी को होती है तो सिर्फ उस मां को जिसने उसे जन्म दिया। छोटी सी नन्ही जान धीरे -धीरे बड़ी होती है उस घर के आंगन की मिट्टी, गोबर ,तुलसी पिंडा, नीम का पेड़ और ना जाने कितनी झाड़ियों से मोह लगा  बैठती है ।सुबह गायों से लिपट कर उसे चारा देकर छोटे भाई- बहनों के लिए नाश्ता बना कर, पिताजी को चाय और अम्मा का हाथ बटा कर विद्यालय जाती ,कक्षा में भी अव्वल आती । वापस आकर  गायों को चारा देती, दोपहर के बर्तन मांज कर  शाम का सांझा देकर रात का खाना बनाती, थोड़ी पढ़ाई करके माता-पिता के पैरों में तेल लगा कर फिर सो जाती। यह कार्य नित्य करती, धीरे-धीरे वह विवाह योग्य हो गई माता पिता जी अपनी सामर्थ्य के अनुसार उसका विवाह किया। कहते हैं विवाह के बाद बेटी पराई हो जाती है और शायद यही बात उस बच्ची को घर कर गई ।घर में भाइयों की शादी हो गई, पिताजी भी दुनिया छोड़ गए। घर में अकेली मां थी और भाई और भाभी उनके बच्चे।

बीटी सोचती थी मां को बहुत स्नेह और आदर के साथ भैया -भाभी रखते होंगे कभी एक-दो दिन के लिए आती तो उसे कुछ भी पता ना चलता और मां भी उससे कुछ ना बोलती,धीरे-धीरे मां की तबीयत बिगड़ने लगी बेटी को जब इस बात की खबर मिली कि मां की तबीयत बहुत खराब है ,किसी तरह अपने घर के कामों से छुटकारा पाकर दो-तीन दिनों के लिए मां के पास रहने के लिए आ गई दिन रात मां की  सेवा करती, समय पर खाने देती ,दवाइयां देती कब 3 दिन बीत गए पता ही ना चला अब वापस जाना था बेटी को, मां का जैसे कलेजा फट गया और अपनी बेटी को पकड़कर वह रोने लगी और कहते हैं ना कोई कष्ट कब तक सह सकता है अंततः मां ने अपनी बेटी को अपनी सारी व्यथा बता दी यह सुन बेटी को ऐसा लगा मानो उसके पैरों तले जमीन ही ना हो अपनी मां को फौरन तैयार कर अपने साथ ससुराल ले आई मां नहीं चाहती थी कि बेटी के घर में जा कर रहे।  पर जीवन अकेला काटना भी तो कठिन था जैसे ही यह खबर बेटी के ससुराल वालों को लगी कि अब इसकी मां यही रहेगी उसे समाज उसके ससुराल वाले यहां तक कि खुद उसके पति ने उसे ताने देने शुरू कर दिए, बहुत दिनों तक तो वह बातों को दवा ली लेकिन एक दिन उसकी मां ने स्वता ही सुन लिया कि मेरे कारण घर में तनाव का माहौल है, उसने बेटी से कहा बेटा मैं घर जाऊंगी और बेटा -बहु तो मेरा ही है घर भी तो देखना है पिताजी ने कितने कष्ट से वह घर बनाए हैं। तुम समझदार हो मुझे जाने दो। बेटी सब कुछ समझ गई थी ,की मां ने आपस के अन -बन को भाप लिया है, बेटी ने कहा मां अब तुम वापस वहां नहीं जाओगी जहां भाभी की तो छोड़ो भाई ने भी तुम्हारा ध्यान नहीं रखा और यहां पर रहकर तुम अपने स्वाभिमान को नहीं खो सकती है इसलिए तुमने मुझे पढ़ाया -लिखाया है मैं तुम्हारे साथ चलूंगी मैं तुम्हारे साथ रहूंगी मैं मेहनत करूंगी और तुम्हें अच्छा से रखूंगी। क्या मां को रखने का अधिकार सिर्फ बेटा को है ?बेटी को नहीं मैं यह ससुराल अभी त्याग रही हूं जहां के लोग सिर्फ मनुष्य रूप में है उनके अंदर मानवता नहीं है, उनके अंदर इंसानियत नहीं है। मां तुमने मुझे जन्म दिया है और मेरा सबसे प्रथम कार्य यही है कि मैं तुम्हारी देखभाल करू, तुम्हारा ख्याल रखू,और तेरी हर परेशानी को समझते हुए जीवन के अंतिम क्षण  तक तुम्हारे साथ  रहूं मैं। यह सुन मां राई नहीं बल्कि  बहुत  ही गौरवान्वित हुई और अपनी बेटी के साथ एक अलग जिंदगी बिताने के लिए  चल पड़ी किसी नए घर की तलाश में।

डॉ. रोजी कांत की अन्य किताबें

किताब पढ़िए