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एक उम्मीद ही जिंदगी है...

20 सितम्बर 2022

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कभी कभी चाहत होती है कुछ लिखने की जिसे पढ़ कर कोई भी समझ ले मेरे अंतर्मन में चल रही उथल पुथल को। उसकी गहराइयों को लोग समझे। मेरे सुख, दुख, हास्य, रोमांच और कई तरह की जो भावनाएं मेरे अंतर्मन में घूम रही है और उसके घूमने से जो बवंडर सा उठाता है फिर शांत होता है फिर अपनी अंगड़ाई लेता है, उसे लोग महसूस करें।
कभी कभी इच्छाएं होती है की कहीं दूर तलक एक सुनसान रास्ते पर चलता जाऊं कभी रुकु नहीं कही पर नहीं। वैसे भी जिंदगी एकांत सी एक सुनसान सड़क के जैसे ही चल रही है जहां छोटी छोटी खुशियां और दुःख आपको संजोते हुए एक साथ आपके हमसफर बनते हुए चलते रहते हैं। अपने सुख दुःख के साथ खुद ही अकेला चलाना भी कभी कभी भारी लगने लगता है, कभी कभी मन करता है की उतार फेंकू इस भार को और ऐसे ही चलता जाऊं अपने मन को हल्का किए हुए। भार वैसे भी लोगो को डूबा ही देता है कभी उनके वजूद का तो कभी उनके अहंकार का।
अब महसूस होता है की मैं वो नही रहा जो कभी हुआ करता था। पहले हसता था तो मेरी हसीं कि बात ही कुछ और होती थी मगर अब मेरे हंसी में वो हसीं वाली बात नहीं रही। अब हस कर शायद मैं अपने अंदर के दुखो के सागर को बाहर आकर झकोरे लेने से छुपाता फिरता हूं। 
इंसान की फितरत भी अजीब होती है कभी उसे सब कुछ चाहिए होता है तो कभी वो सब कुछ छोड़ कर अकेला कही एकांत में रहना पसंद करता है। ये आधुनिक सुख सुविधाओं से भरी दुनिया में भी उसे शांति नहीं मिलती है। शांति के लिए बुद्ध की तरह खुद को प्रबुद्ध बनाना होता है। शांति कोई वस्तु नहीं है जिसे प्राप्त किया जाए शांति तो जीवन का लक्ष्य है जिसे प्राप्त करना इंसान का लक्ष्य होना चाहिए, लेकिन हमारी जिंदगी का लक्ष्य ही बदल गया है। कभी बैठा अकेले मेरे मन के भीतरी भावो को टटोलता हूं तो खुद क्या प्राप्त करना चाहता हूं इस बात का अनुमान लगाना भी कठिन हो जाता है। कुछ लक्ष्य जिंदगी में प्राप्त करने का लक्ष्य तो है मगर उसके लिए त्याग की भावना लाना नहीं चाहता हूं। सब कुछ पाना चाहता हूं मगर खोने का डर फिर से उसे प्राप्त करने से रोकता है। रुकता हू मगर ये मन तो चंचल है ये कहां रुकता है एक जगह। ये मन रूक जाता तो पूरी समस्या ही खत्म हो जाती। 
कभी कभी खुद को सुनना भी अच्छा होता है, है इंसान को ऐसा करना चाहिए खुद को सुनना चाहिए। लेकिन आजकल हर इंसान के अंदर एक शोर सा है जिस शोर में एक ऐसी आवाज को सुनना जो जिंदगी के कठिन रास्तों को भी आसान बना सके वो भूत ही मुस्किल है। हमे खुद को सुनने के लिए पहले खुद के अंतर्मन को शांत करना होगा। सिद्धार्थ ने खुद को सुना, कठिन परिश्रम कर खुद के मन को भूत ही शांत बनाया तब जाकर उनके अंदर की शांति से जो आवाज आई उस एक आवाज ने उन्हें सिद्धार्थ से महात्मा बुद्ध बनाया। वैसे ही हमे भी खुद के अनतर्मन की आवाज को सुनना होगा अपनी जिंदगी के उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जिस लक्ष्य के लिए हमारा इस धरती पर अवतरण हुआ है।
हम एक रास्ते में भटके हुए उस मुसाफिर की तरह जो अपने रास्ते से अज्ञात है।
पर अज्ञात होने के बाद भी हमे अपने कदम को बढ़ाते रहना है, हमें अपने कदम को रुकने नहीं देना है जब तक हमारे अंदर एक उम्मीद की किरन है हम यूंही आगे बढ़ते रहेंगे।
हमें अगर अपने जिंदगी के लक्ष्य को प्राप्त करना है तो हमें अपने अंदर के शोर रूपी लालच, कामना, मोह, वासना और झूठ को निकाल फेंकना होगा। हम सोचते है रहते है ये जो हमारी सोच है ये हमारे मन का वहां है की दुनिया हमें आगे बढ़ने से रोकती है मगर हम जब तक खुद को न रोके तब तक हमें कोई भी ताकत नहीं रोक सकती है। हमारी लड़ाई इस दुनिया से नहीं हमारी लड़ाई तो खुद से है हमें खुद को जितना है। जिस दिन हमने खुद पर विजय प्राप्त कर ली उस दिन हम इस दुनिया पर विजय प्राप्त कर लेंगे।
जितने से ज्यादा जरूरी है हमारे अंदर जीत की आग और जीत की उम्मीद का जिंदा होना, जब तक ये उम्मीद है हमें कोई नहीं हरा सकता है।


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