"दे दो ऐसा वरदान..."
हे! जगजननी करुणामयी माता द्वार तुम्हारे आई हूँ। अक्षत-रोली, धूप-दीप नहींबस,श्रद्धा सुमन संग लाई हूँ। अपने अश्रु की धारा सेतेरे चरण पखारुँगी।प्रेम-समर्पण की माला सेतेरी छवि संवारुँगी। पूजा की मैं रीत ना जानू जप-तप का नहीं कोई ज्ञान।अर्पण तुझको तन-मन मातामैं ना जानू विधि-