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आओ मन की करे ..

29 जनवरी 2015

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बात कुछ १ साल पुरानी है , मै ट्रैन से नागपुर से दुर्ग अपने घर आ रहा था .मै जनरल बोगी में अपने दोस्तों के साथ हंसी मज़ाक करते बतीया रहा था . भीड़ इतनी थी की एक सीट पर ६ लोग बैठे थे . सभी एक दूसरे में खोय हुए थे . ट्रैन स्टेशन से कुछ ही दूत पहुंची थी कि तभी बोगी के दूसरी ओर से डुग दुगी सी बजने की आवाज सुनाई दी . जो कि किसी फिल्म के गाने की धुन थी . धीरे धीरे वो धुन तेज होती गई . कुछ समय पश्चात एक महिला उस डुग दुगी को बजाते दिखी . उसके साथ एक बच्ची थी , जो लगभग २ से ३ साल की होगी . उस बच्ची क हाथ में एक रिंग था , जो लगभग १० इंच व्यास का होगा . वैसे हमे एहसास था की कोई बच्चा होगा जो डांस कर रहा होग़ा .और उसके बदले एक दो रुपया मांगेगा . हम उन्हें देखने लगे , बच्ची के चेहरे पर मासूमियत दिख रही थी , और उसके चहरे पर पसीना म्रेरे हृदय को अधिर बना रहा था. वह बच्ची धुन के बीच करतब शुरू की , लेकिन पता नहीं क्या हुआ इस बार , बच्ची उस रिंग से अपने सिर और पैर दोनों गुजारने की कोशिस कर रही थी पर सफल नही पा रही थी , उसके आँखों से आंसू बहने लगे , वह कोशिस करती और उस महिला की तरफ देख और रोती , फिर प्रयास करती , मैंने उस महिला की ओर देखा , महिला क्रोध से भरी थी ,उसकी आँखे बहुत कुछ कह रही थी , मुझे एहसास हो रहा था कि उस बच्ची को गर पर मार पड़ेगी .मुझे भी क्रोध आने लगा कि एक माँ अपने बच्चे के साथ ऐसा कैसे कर रही है , मन कर रहा था कि उस माहिला की मारू पर, सभी शांत थे मै व्याकुल हो रहा था , मन में आया की ये सब पैसे के लिए करवा रही है ये महिला , मैंने पर्स से २० रुपए निकले और उस बच्ची को दिया , उसके सिर प हाथ फेरा . कुछ और लोगो ने पैसे देते गए. और वये आगे चले गए , मै सोचता रहा हम कितने संवेदनहीन हो रहे है. एक माँ को अपने बच्चे को हो रहे दर्द का अहसास नहीं हो रहा , तो अंन्यकी बात ही कया करे .ऐसे ही कई बच्चे रेल के डिब्बो में कंही बंदर के स्थान पर नाच रहे है . तो कही नंगे बदन होकर अपने कपडे से फर्श साफ कर रहे है, कुछ पैसो के लिए . कुछ उन पैसो से पेट की भूख मिटते है तो कुछ नशा कर किसी डब्बे में धुत पड़े रहते है. इतने लोगो के बीच इन बच्चो को न कोई देखता है न कोई सुनता है , कया हमारी संवेदनाये मर रही है . हमे अपने अंदर की संवेदनाओ को जगाना होगा , मन की बात तो करना होगा , सिर्फ मन में रखने से कुछ नहीं हिगा . ...चले मन की करे , लेकिन संवेदनशील होकर ...... मनोज शर्मा दुर्ग

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