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1 किताब
एक छोटी-सी नौकरी का तलबगार हूँ मैंतुमसे कुछ और जो माँगूँ तो गुनहगार हूँ मैंएक-सौ-आँठवीं अर्ज़ी मेरे अरमानों कीकर लो मंज़ूर कि बेकारी से बेज़ार हूँ मैंमैं कलेक्टर न बनूँ और न बनूँगा अफ़सरअपना बाबू ही बना ल
कच्ची मिट्टी का बना होता है उम्मीदों का घर,ढह जाता है हकीकत की बारिश में अक्सर.