पटना: दिल्ली के समयपुर बदली का एक लड़का इन दिनों पूरे देश की पैदल यात्रा कर रहा है. पेशे से इंजीनियर इस लड़के का नाम आशीष शर्मा है. आशीष शर्मा के पैदल यात्रा करने के पीछे का कारण उनके द्वारा उठाया गया एक बहुत बड़ा बीड़ा है. वह देश से बाल भिक्षावृत्ति को खत्म करना चाहते हैं इसलिए लाखों की नौकरी छोड़कर लोगों को जागरूक करने के लिए पूरे देश में पैदल यात्रा कर रहे हैं.
आशीष शर्मा ने बताया कि वह लोगों से बच्चों को भीख ना देने की अपील कर रहे हैं. शुक्रवार को आशीष उत्तर प्रदेश के सहारनपुर पहुंचे थे. यहां उन्होंने जिलाधिकारी पीके पांडे से मुलाकात की. आशीष शर्मा ने बताया कि उन्होंने 22 अगस्त 2017 से पदयात्रा की शुरुआत की थी. वह 1 साल तक पैदल यात्रा करेंगे. इस दौरान वह 1700 किलोमीटर की दूरी तय करेंगे.
आशीष अब तक जम्मू कश्मीर, हिमाचल, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गोवा, दमन, सिलवासा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड की यात्रा कर चुके हैं. देश से बाल भिक्षावृत्ति को खत्म करने के लक्ष्य को पूरा करने के लिए वह युवा पीढ़ी को भी अपने साथ जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं. आशीष शर्मा ने ‘दुआएं फाउंडेशन’ के तहत 17000 किलोमीटर की पदयात्रा को ‘उन्मुक्त भारत’ का नाम दिया है. उनकी योजना 14 जून को ‘उन्मुक्त दिवस’ मनाने की है.
युवा इंजीनियर का कहना है कि वह लोगों की भावनाओं को जगाना चाहते हैं. अपने इस अभियान में वह स्कूल कॉलेजों के अध्यापकों और अधिकारियों से मिलकर जागरूकता के लिए सहयोग मांग रहे हैं. उनका उद्देश्य भीख मांगने वाले बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाना और एक आदर्श समाज का निर्माण करना है. अब तक वह 2 करोड़ से ज्यादा लोगों को भीख ना देने की शपथ भी दिला चुके हैं.
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पटना: डिहरी शहर के पूर्वी हिस्से में सोन नद पर बना 118 साल पुराना अपने समय का देश का सबसे लंबा रेल पुल इतिहास के पन्नों में सिमट गया. रेलवे ने इस पुल को कबाड़ के हाथों बेच दिया. दिल्ली को कोलकाता से जोड़ने वाला ग्रैंड कार्ड लाइन पर डेहरी में इस पुल का निर्माण सन 1897 में प्रारम्भ हुआ था. इसे रेल यातायात के लिए सन 1900 में खोल दिया गया. इस पुल के जर्जर होने के कारण रेलवे द्वारा सोन नद में इसके समानांतर नया पुल का निर्माण कर पुराने पुल पर रेल का परिचालन बंद कर दिया गया था.
अब इस रेल पुल में लगे सामानों को टेंडर लेने वाली कंपनी ने हटाने का कार्य भी तेज कर दिया है. लोहे के खंभों की कटाई भी तेजी से की जा रही है. जिससे यह रेल पुल हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जाएगा.
शाहाबाद गजेटियर के अनुसार 10052 हजार फीट लंबे इस रेल पुल का निर्माण आयरन गिरडर्स व बड़े-बड़े पत्थरों से हुआ था. उस समय स्विट्जरलैंड की टे-ब्रिज की लंबाई 10527 फिट के बाद विश्व के लम्बे रेल पुलों में इसकी गणना होती थी. 93 पाया वाले इस रेल पुल में एक पिलर से दूसरे पिलर की दूरी लगभग 33 मीटर है. पुल की स्थिति जर्जर होने के कारण इस रेल पुल पर रेल परिचालन की गति एक दशक तक 40 किमी तक सीमित की गई थी. फिलवक्त यहां नया रेल पुल का निर्माण किया गया है. जिसके बाद इस रेल पुल को समाप्त करने का टेंडर ‘चिनार स्टील सिग्मेंट सेंटर प्राइवेट लिमिटेड, कोलकाता’ को दिया गया. जहां कटाई का कार्य भी अब अंतिम चरण में पहुंच गया है.
गौरतलब हैं कि, आजादी से पूर्व ब्रिटिश काल में 27 फरवरी, 1900 में बने नेहरू सेतु का इतिहास गौरवशाली रहा है. निर्माण के समय उक्त पुल एशिया के सबसे लंबा रेल पुल था. मुगलसराय-गया ग्रांडकॉर्ड रेल लाइन पर डेहरी ऑन-सोन स्टेशन से सोन नगर जंक्शन को जोड़ने के लिए सोन नदी पर बना उक्त रेल पुल वर्तमान में एशिया महादेश में रेलवे का दूसरा सबसे लंबा पूर्ण बन गया था. वर्तमान में इससे लंबा रेल पुल बेंबानाड रेल ब्रिज है जो भारत के केरल में 11 फरवरी, 2011 में बना है.