स्वाभाविक रूप से हमारे समाज में लड़की का जन्म लेना ये एक बड़ी विचित्र कुरीति बनी हुई है! इसका वैसे देखा जाए तो एक लम्बा इतिहास है! जैसे कि हमारे हिन्दू धर्म में चार वेदों में से एक अथर्वा ऋषि द्वारा रचित अथर्ववेद में लड़की होने को एक अभिशाप के रूप में मान लिया गया है!
तदुपरांत लोग वेदों के जितने बड़े ज्ञाता बने उन्हें लड़की का जन्म अशुभ मानना शुरू कर दिया! अत: इस प्रकार लोगों के मन में यह भ्रांति बैठ गयी कि सच में लड़की होना अशुभ है! लेकिन कदापि उन्होंने ये नहीं समझा कि यदि उस काल पुरुष जो उन पौराणिक ग्रन्थों में बताया गया है उसके अतिरिक्त जो देवी है वो नहीं होती तो क्या ये दुनिया का होना संभव था?
अर्थात इस प्रश्न से मेरे कहने का तात्पर्य ये है कि यदि संसार में पुरुष और स्त्री नहीं होते, तो ये संसार (दुनिया),समाज आदि नहीं हुआ होता!
अत:समाज में जितना लड़के का महत्व है उतना ही लड़की को भी समाज में तवज्जो दी जानी चाहिए! वैसे भी आजकल स्त्री पुरुष के बराबर ही नहीं, बल्कि उससे दो पायदान आगे बढ़ रही है!
अब तनिक सोचिए, विचार कीजिये कि आखिर स्त्री होना (मतलब लड़की होना) एक अभिशाप क्यों है? क्योंकि लोगों ने सोचा होगा कि बेटा होगा तो हमारी अंतिम सांस तक सेवा करेगा! हमें अंतिम क्षण कंधा देगा, जो हमारे लिए योग्य है ! परंतु बेटी को शास्त्रों में कंधा देना अपराध की तरह माना गया है कि बेटी कंधा नही दे सकती है!
वर्तमान में लड़की होने पर एक पिता या उसके भाई पर एक भारी बोझ सा बन गया है कि आखिर कैसे बेटी की परवरिश से लेकर विदाई तक का सफर तय होगा? इसके बाद भी उस पर वह बोझ जीवन भर हटता नहीं है!
अर्थात जो लड़की को लेकर अभिशाप का मुख्य कारण है ,वह है- दहेज प्रथा!
जी बिलकुल ,दहेज से ही परेशान होने से ही लोगों की सोच लड़कियों के प्रति निरंतर ऐसी बनती जा रही है! और फिर लड़की के पक्ष के दहेज ही नहीं , भाई पक्ष से भात भी एक दहेज ही है! क्योंकि भाई बेचारा अपना परिवार जैसे-तैसे पाल रहा होता है! लेकिन उस दंपति पर भी ये ही चिंता सता रही होती है कि उसकी बहन का भात भी भरना है! एक पिता को भी इसी तरह लड़की की शादी में दहेज की चिंता रहती है! अगर सही मायने में देखा जाए तो भात भी एक दहेज रूपी कुप्रथा है!
अतः समाज को "दहेज और भात" दो कुप्रथाओं ने बर्बाद कर दिया है! जिस दिन ये प्रथाएं खत्म हो जाएगी, आप ही देख लीजिएगा उसके बाद लोग लड़कियों को लड़के के समान ही समझने लगेगें!
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