वह ठसाठस भरी बस में तिल-तिल बढ़ता हुआ आखिर उस सीट तक पहुँच ही गया जिसके किनारे की साइड में एक पन्द्रह वर्षीय खूबसूरत लड़की बैठी थी। चंद पल वह स्थिर खड़ा रहा फिर आहिस्ता से अपना दाहिना हाथ सीट की पुश्त पर रख कर लड़की के बाएं कंधे को उंगलियों से स्पर्श किया। लड़की की कोई प्रतिक्रिया न देख उसने हाथ का दबाव और बढ़ा दिया। लड़की अब भी शांत थी। उसके ओठों पर कुटिल मुस्कान रेंगने लगी।
लगभग आधा घंटा बाद लड़की के बगल में बैठे उसके गंवई पिता ने ड्राइबर को अगले स्टॉप से थोड़ा पहले बस रोकने के लिए आवाज दी। बस रुकने पर पिता ने ऊपर की बर्थ पर रखा थैला कंधे पर टाँग कर बेटी को दोनों हाथ से गोद में उठा लिया।
'इन्हें क्या हुआ?' सहसा उसके मुँह से निकल गया।
'बेटी के बाएं हिस्से में लकवा मार गया।' पिता ने बताया और उतरने के लिए लोगों से जगह देने की गुहार लगाता आगे बढ़ गया।
उसे लगा कि उसके पूरे शरीर के साथ आत्मा भी लकवाग्रस्त हो गयी हो।
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