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लहरों से खेलते सागर की व्यथा

29 जनवरी 2015

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अथाह जल में जीवन अंकुर फूटा, उत्पत्ति का सूत्र धार झूमा, पृथ्वी पर जीवन ढाल बना, महासागरों की माया ने, जीवन को सजाया है, जहाँ अनेक जीव व वनस्पति से लेकर, विशालकाय व्हेल पनपते, भरा है लवणता और विशिष्ट ऊष्मा धारिता गुण जिसमें, मौसम निर्धारण का प्रमुख कारक कहलाता, सूर्य ऊर्जा का बड़ा हिस्सा अपने में अपने समालेता, ऊष्मा का भण्डारण कर लेता, मौसम संतुलन कर औसत तापमान कायम रखता, खारेपन के गुण से जलवायु बदलाव पनपता, जल घनत्व व ताप के अंतर से गरम धाराएँ ठंडे क्षेत्र को ढूंढती, खारेपन से सागर में ये धाराएँ उत्त्पन्न होतीं, न खार में अंतर होता न धाराएँ सक्रिय होती, ठंडा क्षेत्र ठंडा होता गरम क्षेत्र गर्म ही रहता, जीवन के रंग न विखेरे रहता, जलवायु निर्धारण में महासागरों का जलवा रहता, आज तटों पर प्रदूषण, आग सा भभक रहा, तेल रिसाव के कारण, सागर की परत मटमैली कर रहा, सूर्य प्रकाश की कमी से, जीव मुश्किल से पल रहा, पृथ्वी पर तापमान शने:-शने: बढ़ रहा , कार्बनडाईऑक्साइड की अवशोषित क्षमता घटा रहा, ग्लोबल वार्मिंग संतुलन बिगाड़ रहा, जीवन संकट डगमगा रहा, महासागरों का जलस्तर बढ़ा रहा, विश्व में मौसम गड़बड़ा रहा, याद आता है पौराणिक किस्सा, राम ने लंका जाने को सागर से रास्ता मांगा था, सागर देव पर अपना क्रोध दर्शाया था, फिर याद आई थी उनको मर्यादा, सागर के जीवों को बचाने की, झट समझ गए मर्यादा पुरुषोत्तम , दूत बना भेजा हनुमान को, आज समय है इंसान को, मर्यादा में रहने की, पृथ्वी पर महासागर के अस्तित्व को कायम रखने की, अगली पीढ़ी के लिए इन्हें सुरक्षित रखने की | ******************************** अरविंद कुमार सरन वरिष्ठ प्रिन्सिपल वैज्ञानिक राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान

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