हमारे जीवन में संस्कारों की आधारशिला हमारे माता पिता बचपन से ही रख देते हैं प्रथम गुरु होने के नाते हर माता पिता अपने बच्चे को आदर्श बनने की प्रेरणा देते हैं।
समय के अनुसार जिंदगी की गतिविधियां बीतती जाती हैं और कहीं न कहीं हम यह समझ लेते हैं कि अब हमें माता पिता के आदर्शों को मानने की जरुरत नहीं है।
समय लगातार बीतता जाता है और एक समय ऐसा आता है जिस समय हम अच्छे बुरे की पहचान करने में असमर्थ होते हैं, माता पिता के साथ ज्यादा समय न बिताने के कारण हम अपने आप को अकेला जैसा महसूस करने लगते हैं, उस समय हम ऐसा सोचते हैं कि दुनिया में कोई ऐसा भी व्यक्ति है जो हमें माता पिता से ज्यादा प्यार दे सकता है, यहां से हमारे जीवन में प्रेम कहानी की शुरुआत होती है, छड़िक खुशी के लिए हम इतना उतावले हो जाते हैं कि हम यह भूल बैठते हैं कि सामने वाला व्यक्ति किस संप्रदाय,जाति,धर्म या कि स्वभाव का है।
यह कहानी अधिकतर सभी लड़के,लड़कियों के जीवन को छूकर निकलती है और हम जीवन के वास्तविक अचीव(टारगेट)को भूल जाते हैं।
प्यार की दुनिया में मगन होने पर हमारी बातें अक्सर हमारे घर तक पहुंच जाती हैं, पिता के मना करने पर "जिस पिता ने उंगली पकड़कर चलना सिखाया है" आज हम उनकी बात को ठुकरा देते हैं,"जिस मां ने आंचल में सुलाकर पाला है हमें" आज उनकी बातें हमें अच्छी नही लगती
अंततः परिवार वालों की वजह से कई बार हम अपने प्यार से अलग हो जाते हैं, और ऐसा सोचने लग जाते हैं, कि अब हमारे जीवन का कोई अस्तित्व नहीं है, और वह नहीं मिला/वह नहीं मिली तो मैं सुसाइड कर लूंगा
अक्सर कई बार हम ऐसी गलतियां कर जाते हैं, जिसका बुरा असर हमारे परिवार पर पड़ता है और परिवार में सोक का माहौल छा जाता है, रिश्तेदार और गांव वाले परिवार की तरफ दूसरी निगाहों से देखने लग जाते हैं, बच्चों के प्रति मां बाप के सारे अरमान टूट जाते हैं,अंततः कुछ दिन बाद परिवार की इस्थि ठीक हो जाती है,,और फिर........................
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