Mere alfazo me kahi uski baate
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तू हाथों की लकीरों सा क्यों नहीं तू दिल की धड़कन सा क्यों नहीं तू मेरे लफ़्ज़ों की सच्चाई क्यों नहीं तू इस जख्म का मरहम क्यों नहीं तू मेरे प्यार में क्यों नहीं तू मुझमें क्यों नहीं तू प्यार है त
गर क़दर जज़्बातों की होती कोई ख़्वाब टूटता ही क्यों
ज़माने को हमसे हैं उम्मीदे शायद हममें कुछ बात होगी
उसका दर्द में ले लूं मेरा सुकून उसका मुकद्दर बन जाए
इतनी कोशिश की तुम्हें चाहने की कि हम ही बदनाम हो बैठे
मैं ढूंढता रहा सीरत ऐसी जो मुक्कमल कर दे मेरे अल्फ़ाज़
आंखों का क्या कसूर मंज़र ही इतना हसीं हैं
आज कल शब्दों में वो बात कहा हम अपने अल्फाजों से काफ़िर होना चाहते हैं
किसी के नमाज़ी बनना चाहते हैं इस क़दर हम, हम बनना चाहते हैं
उसे देख लड़खड़ाया दिल संभलने लगा पर हमने रोक लिया, चलेंगे फिर कभी।