समाज में महिलाओं की बहुत बड़ी और महत्वपूर्ण भूमिका है। महिलाओं की
तरक्की के बगैर खुशहाली नहीं लाई जा सकती है। इतिहास गवाह है कि उन्हीं
देशों में तेजी से विकास हुआ है जहां महिलाओं की शिक्षा, सशक्तिकरण और उनके
समग्र उत्थान पर विशेष ध्यान दिया गया है।
– अखिलेश यादव मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश
नौकरीपेशा और कामकाजी महिलाओं के लिए उत्तर प्रदेश में बेहद अनुकूल माहौल
है। ‘द एसोसिएटेड चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एण्ड इंडस्टरी ऑफ इण्डिया’ (एसोचैम)
और नॉलेज फर्म ‘थॉट आर्बिटरेज रिसर्च इंस्टीट्यूट’ (टारी) की ओर से हाल में
जारी रिपोर्ट में इसकी पुष्टि की गई है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि
महिला कामगारों के मामले में पूरे देश में ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में
उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा है। इसके साथ ही यह राज्य पूरे देश
को नई राह भी दिखा रहा है, क्योंकि इसी मामले में भारत दुनिया के दूसरे
देशों के मुकाबले बहुत पीछे है। जबकि उत्तर प्रदेश की वर्तमान सरकार द्वारा
इस क्षेत्र में सुधार के कई प्रयास किए गए है और वहीं स्वास्थ्य , शिक्षा
को बढावा, प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण तथा महिलाओं के बीच एफएलएफपी के
महत्व को लेकर जागरूकता फैलाने के लिए लगातार काम हो रहे हैं। ऐसे में भारत
सरकार और देश के दूसरे राज्यों को उत्तर प्रदेश से सीख लेने की जरूरत पर
रिपोर्ट में बल दिया गया है।
इस अध्ययन के जरिए एसोचैम और टारी ने भारत में महिला श्रमशक्ति की भागीदारी
विषय पर किए गए अध्ययन में महिला श्रमशक्ति भागीदारी (एफएलएफपी) के मामले
में दुनिया के बाकी देशों के मुकाबले भारत की स्थिति का विश्लेषण किया। साथ
ही यह जानने की कोशिश भी की कि भारत में कौन से वजह है महिला श्रमशक्ति
भागीदारी को तय करते है और इसमें सुधार के लिए क्या बाधाएं आती हैं। अध्ययन
के लिए देश चार राज्यों उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश तथा
मध्य प्रदेश में एफएलएफपी की स्थिति का विश्लेषण किया गया है। इसके पाया
गया कि देश का सबसे ज्यादा आबादी वाला राज्य होने के बावजूद उत्तर प्रदेश
में महिला श्रमशक्ति की भागीदारी को बढ़ावा दने के लिए प्रदेश सरकार की ओर
बेहद उम्दा काम किए जा रहे हैं। जबकि भारत सरकार के बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ,
सेल्फी विद डॉटर, मेक इन इंडिया, स्टार्ट अप जैसे कार्यक्रमों के बावजूद
राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं की भागीदारी नहीं बढ़ रही है।
एसोचैम के राष्ट्रीय महासचिव डीएस रावत ने यह अध्ययन रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि अध्ययन में शामिल किये गये चार राज्यों में से उत्तर प्रदेश में शहरी क्षेत्रों में स्वावलंबी महिलाओं का प्रतिशत सबसे ज्यादा (67.5) है। रावत ने कहा कि देश में कुटीर, लघु तथा मध्यम औद्योगिक इकाइयों (एमएसएमई) में 33 लाख 17 हजार महिलाओं को रोजगार मिल रहा है। उनमें से दो लाख महिलाओं को उत्तर प्रदेश की एमएसएमई से रोजी-रोटी मिल रही है। पूर्णकालिक श्रमिकों की संख्या के लिहाज से भी उत्तर प्रदेश देश में अव्वल है। इनमें चार करोड़ 98 लाख 50 हजार पुरुष तथा एक करोड़ 59 लाख 70 हजार महिलाएं शामिल हैं। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश की वर्तमान सरकार ने सुधार के अनेक प्रयास किये हैं। वैसे अभी काफी काम होना बाकी है, जिसे लेकर राज्य की वर्तमान सरकार सजग है। स्वास्थ्य, शिक्षा को बढावा, प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण तथा महिलाओं के बीच एफएलएफपी के महत्व को लेकर जागरूकता फैलाने के काम प्रदेश में अभी भी जारी हैं।
इस अध्ययन में जहां उत्तर प्रदेश में महिलाओं के लिए कामकाज के बेहतर माहौल की तारीफ की गई, वहीं केंद्र सरकारों के ढुलमंल रवैये से घट रही एफएलएफपी पर चिंता भी जताई गई है। अध्ययन में पता चला है कि देश में फीमेल लेबर फोर्स पार्टिशिपेशन यानी कि महिला श्रम भागीदारी पिछले एक दशक में 10 फीसदी घटकर निचले स्तर पर पहुंच गई है। 2000 से 2005 तक कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी 34 प्रतिशत से बढ़कर 37 फीसदी तक पहुंच गई थी, जो साल 2014 तक लगातार गिरते हुए 27 फीसदी पर आ गई। यानी देश में महिला श्रम बल भागीदारी (एफएलएफपी) दर पिछले एक दशक में 10 फीसदी घट गई है।
वर्ल्ड बैंक बैंक के आंकड़ों के मुताबिक महिला भागीदारी के मामले में भारत 186 देशों में 170वें पायदान पर है। ब्रिक्स देशों में भी भारत 27 फीसदी के साथ आखिरी पायदान पर है, जबकि महिला श्रम बल भागीदारी के मामले में चीन में 64 फीसदी के साथ पहले स्थान पर है। इसके बाद ब्राजील में 59 फीसदी, रूस में 57 फीसदी, दक्षिण अफ्रीका में 45 फीसदी और आखिर में भारत 27 फीसदी पर है। साल 2011 में ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुष और महिला श्रम बल भागीदारी का फासला जहां करीब 30 फीसदी रहा, वहीं शहरी क्षेत्रों में यह करीब 40 फीसदी रहा।
अध्ययन में यह भी कहा गया है कि विवाह होने से ग्रामीण क्षेत्रों में कुल
श्रमशक्ति में महिलाओं की भागीदारी में करीब आठ प्रतिशत की कमी हो जाती है
और शहरी क्षेत्रों में तो करीब दो गुने का फर्क पड़ता है। अध्ययन के अनुसार
महिला सशक्तिकरण की दिशा में अभी और प्रयास किये जाने की जरूरत है, ताकि
महिलाओं को रोजगार के अवसरों में वृद्धि हो और ज्यादा संख्या में महिला
उद्यमी तैयार करने लायक माहौल बन सके। अध्ययन में केंद्र सरकार और दूसरे
राज्यों को सुझाव दिया गया है कि देश में महिला श्रमशक्ति की भागदारी बढ़ाने
के लिये महिलाओं को क्षमता विकास प्रशिक्षण उपलब्ध कराने को बढ़ावा देने,
देशभर में रोजगार के अवसर उत्पन्न करने, बडी संख्या में चाइल्ड केयर केंद्र
स्थापित करने तथा केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा हर क्षेत्र में महिलाओं
की सुरक्षा सुनिश्चित करने सम्बन्धी प्रयास किया जाना बेहद जरूरी है।
एसोचैम के सुझावों के मुताबिक श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के
लिए विशेष स्किल डेवलप ट्रेनिंग, छोटे शहरों में रोजगार के अवसर, बच्चों और
बुजुर्गों की देखरेख के लिए केयर सेंटर, सुरक्षित वर्क एनवायरमेंट,
सुरक्षित शहर-सड़क, महिला ओरिएटेंड बैंक, वूमेन पुलिस स्टेशन जैसे कुछ
महत्वपूर्ण कदम केंद्र सरकार को उठाने होंगे। वहीं कामकाजी महिलाओं की
मानें तो समाज को महिलाओं के प्रति सोच और नजरिया बदलना होगा। सामाजिक
बंदिशों में जकड़ने की बजाय उन्हें जब तक सुरक्षित माहौल नहीं मिलेगा।
यह रिपोर्ट उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की उस सोच और योजनाओं
की ही पुष्टि करती है, जिसमें उन्होंने कहा था कि महिलाओं की तरक्की के
बगैर देश, प्रदेश या समाज में खुशहाली नहीं लाई जा सकती। इसी सोच के
मद्देनजर महिला सशक्तिकरण के माध्यम से उत्तर प्रदेश सरकार समाज में
सकारात्मक बदलाव लाने के लिए प्रयासरत है। प्रदेश में महिला के नाम पर
प्रापर्टी की रजिस्ट्री कराने पर स्टाम्प ड्यूटी में छूट की व्यवस्था जहां
पिछली समाजवादी सरकार द्वारा प्रारम्भ की गई थी। इससे लोग अपनी पत्नी व
परिवार की अन्य महिला सदस्यों के नाम पर प्रापर्टी की रजिस्ट्री करवाने
लगे, जिससे उनका महत्व बढ़ा है। अब राज्य सरकार द्वारा प्रारम्भ की गई
समाजवादी पेंशन योजना में परिवार की महिला मुखिया को ही पेंशन की पात्रता
हेतु प्राथमिकता दी जा रही है। इस आर्थिक सहायता से परिवार और समाज में
उनका सम्मान बढ़ रहा है। 1090 वूमेन पावर लाइन के माध्यम से सरकार महिलाओं
को सुरक्षा प्रदान कर रही है। इस सेवा ने महिलाओं का आत्मविश्वास बढ़ाया है।
महिला सशक्तिकरण और उनके आर्थिक स्वावलम्बन के लिए रानी लक्ष्मीबाई महिला
सम्मान कोष की स्थापना की गई है। इसके तहत अभी हाल ही में 20 महिला ग्राम
प्रधानों एवं अन्य 19 महिलाओं को सम्मानित किया गया है। कन्या विद्या धन
इण्टर पास बालिकाओं को आगे की पढ़ाई के लिए दिया जाता है। इससे उत्तर प्रदेश
में महिलाओं की स्थिति और महत्व दोनों का अंदाजा लगाया जा सकता है।