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मनुस्मृति : एक संक्षिप्त समीक्षा

26 दिसम्बर 2024

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किसी भी समाज के सुचारु रूप से चलने के लिए, समाज में समरसता कायम रखने के लिए और समाज के उत्थान के लिए कुछ नियमों और अनुशासन की आवश्यकता होती है। समय-समय पर हमारे देश के ऋषि महर्षियों ने वेद, पुराण, संहिता, स्मृति, ग्रंथ और शास्त्रों की रचना कर मानव जीवन को सही तरीके से जीने का मार्ग प्रशस्त किया।

जैसे किसी देश के लिए संविधान और नियम कानूनों की आवश्यकता होती है, ठीक उसी प्रकार आज से कई हजार साल पहले ऋषि मनु ने भारतीय हिन्दू समाज के लिए मनुस्मृति की रचना की। यह भारतीय न्याय शास्त्र और सामाजिक नैतिकता के सबसे शुरुआती कार्यों में से एक माना जाता है। लेकिन मनुस्मृति कई सदियों से विवादास्पद रही है। इसका कारण यह है कि एक तो यह मुख्यतया पुरुष प्रधान समाज के दृष्टिकोण से लिखा गया है, जिसमें महिलाओं को केवल संपत्ति के नजरिये से देखा गया है। और दूसरा कारण यह है कि यह जातिवाद का पुरजोर समर्थन कर, कमजोर वर्ग के लोगों को गुलामों जैसी जिंदगी जीने को बाध्य करता है।

मनुस्मृति के कारण एक वर्ग विशेष (शूद्र वर्ण) को तथा-कथित जातिगत आधार पर निम्न वर्ग कहा गया। महिलाओं और इस वर्ग के लोगों के बुनियादी अधिकार छीन लिए गए और उन्हें तथा-कथित उच्च वर्ग के लोगों की दया पर छोड़ दिया गया। उन्हें ना तो शिक्षा का अधिकार दिया गया, ना ही सम्पत्ति जमा करने का। मनुस्मृति में कई जगह कमजोर वर्ग  के लोगों के लिए और महिलाओं के लिए बहुत निम्न कोटि की बातें कही गई हैं। जिसे आज का सभ्य और उच्च समाज स्वीकार नहीं कर सकता।

भीमराव अंबेडकर जी ने 25 दिसंबर 1927 को अपने हज़ारों समर्थकों के साथ मिलकर मनुस्मृति की कई प्रतियां जलाई थी और कहा था -”आइए मनुस्मृति जैसे प्राचीन हिंदू धर्मग्रंथों के वर्चस्व को नष्ट करें। क्योंकि मनुस्मृति ने समाज में भेदभाव और असमानता उत्पन्न की है। धर्म और गुलामी साथ साथ नहीं चल सकते। मनुस्मृति धर्म का नहीं बल्कि असमानता, क्रूरता और अन्याय का प्रतीक है।”

यह बात सच है कि मनुस्मृति के कारण महिलाओं और कमजोर वर्ग के लोगों का हज़ारों सालों तक उत्पीड़न होता रहा। उनके साथ पशुओं या पशुओं से भी बदत्तर बर्ताव किया गया। शूद्र वर्ण के लोगों के लिए लिखा है कि यदि किसी शूद्र ने गलती से भी वेद मंत्र सुन लिए तो उसके कानों में शीशा पिघलाकर डाल दें। मनुस्मृति में दण्ड-विधान के नियम भी अलग-अलग वर्ग के लोगों के लिए अलग-अलग लिखा गया है।

लेकिन मनुस्मृति जो आज सर्वत्र उपलब्ध है वह महर्षि मनु द्वारा लिखी हुई मनुस्मृति की मूल प्रति नहीं है; बल्कि महर्षि मनु के बाद ब्राह्मणवादी लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए और ब्राह्मणवाद को समाज में महान साबित करने के लिए मूल मनुस्मृति में अपने हिसाब से अनाप शनाप  बहुत सी  गलत और घटिया बातें जोड़ दी। वो बातें महर्षि मनु ने कभी नहीं लिखी।  यह अंबेडकर जी ने भी अपनी पुस्तकों में स्वीकार किया है कि महर्षि मनु द्वारा लिखी हुई मनुस्मृति से छेड़-छाड़ की गई।

कभी किसी समय में जो बातें गलत लिखी गई हों या किसी ने कुछ गलत किया हो तो आज नहीं तो कल उसका भाँड़ा फूट ही जाता है और सच्चाई सामने आ ही जाती है। समय बडा बलवान होता है। राजा को रंक बनते और रंक को राजा बनते देर नहीं लगती। जब तालाब में पानी होता है तो मच्छलियाँ कीड़े मकोड़े खाती हैं। लेकिन जब तालाब सूख जाता है तो कीड़े मकोड़े मच्छलियों को खाते हैं। प्रकृति इस जगत में एक बैलेन्स बनाए रखती है।

सदियों पहले ब्राह्मणवाद ने समाज में अन्याय और क्रूरता फैलाई। उन्हें लगा शायद हमेशा उनका ही राज चलेगा। लेकिन इस सृष्टि के अपने नियम हैं। कर्म कभी किसी का पीछा नहीं छोडते। अपने-अपने कर्मों का हिसाब सभी को देना पडता है। अंबेडकर जी ने 25 दिसंबर 1927 को अपने हज़ारों समर्थकों के साथ मिलकर मनुस्मृति की कई प्रतियां जलाई लेकिन तथा-कतिथ ब्राह्मणवाद केवल देखता रह गया। कभी किसी ने अन्याय किया है तो उसका भी नंबर आएगा। प्रकृति सभी को मौके देती है। अपने-अपने कर्मों के फल सभी को भुगतने पडते हैं।

जैसे कि हमने पहले भी बताया कि मूल मनुस्मृति में ब्राह्मणवाद ने छेड़-छाड़ किया जिससे  समाज में भेद-भाव और विघटन शुरू हुआ। लेकिन मूल मनुस्मृति में  बहुत सी ज्ञानोपयोगी और अच्छी बातें लिखी हुई हैं, जो आज भी प्रासंगिक हैं और जिनका महत्त्व हमेशा रहेगा। जिन लोगों के अंदर ज्ञान-पिपासा है उन्हें एक बार मनुस्मृति जरूर पढनी चाहिए। कुछ अच्छी और ज्ञानोपयोगी बातें निम्नलिखित हैं:-

परपत्नी तु या स्त्री, स्याद संबंधा च योनितः,
ताम ब्रूयाद-भवती-त्येवम, सुभगे भगनीती च।
मातुलांश्च पितृव्यानश्च, श्वशुरानृत्विजों गुरुं,
असावहमिति ब्रूयात-प्रत्युत्त थ्याय यवीयसः।

व्यक्तियों को अपने से बड़ों का तथा स्त्रियों का आदर करना चाहिए। दूसरे की पत्नी या जिससे किसी प्रकार का रिश्ता ना हो, उससे आप, बहन या सौभाग्यवती कह कर ही बात करें। अपने से बड़ों से खड़े उठकर बात करनी चाहिए और सम्मान करना चाहिए।

विप्राणाम ज्ञानतो ज्यैष्ठ्यम, क्षत्रियाराणंम तु वीर्यतः,
वैश्यानां धान्यधानतः, शूद्राणा मेव जन्मतः।
न तेन वृद्धो भवति, येनास्य पलितं शिरः,
यो वै युवाप्य-धीयानस्तम, देवाः स्थविरम विदुः।

मनुष्य नाम से नहीं बल्कि कर्म से पहचाना जाता है। ब्राह्मण ज्ञान से बडा होता है। क्षत्रिय बल से बडा होता  है। वैश्य  धन-धान्य से बडा होता है और शूद्र अधिक आयु से बड़ा होता है। जिस व्यक्ति के बाल सफेद हो जाते हैं केवल वही व्यक्ति बड़ा नहीं होता। जिस व्यक्ति ने वेदों का अध्ययन किया है, वह व्यक्ति भी बड़ा होता है। व्यक्ति जन्म से नहीं बल्कि अपने कर्मों से पहचाना जाता है। जिसने वेदों को पढ़ा है, चाहे वह आयु में छोटा ही क्यों ना हो, वही व्यक्ति बड़ा माना जाता है।

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः,
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।

जिस कुल में स्त्रियों की पूजा की जाती है, उस कुल के देवता भी प्रसन्न रहते हैं। जिस कुल में स्त्रियों की पूजा नहीं की जाती, वहां देवता नाराज रहते हैं। अर्थात यदि स्त्री का सम्मान होता है तो देवताओं को प्रसन्नता होती है। जहां स्त्री का सम्मान नहीं होता वहां पर सभी प्रकार के पूजा यज्ञ आदि से कोई फल प्राप्त नहीं होता।

शोचन्तिजामयोयत्र विनश्य-त्याशुतत्कुलम,
न शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तद्धि सर्वदा।
जामयो यानी गेहानि शपन्त्य-प्रतिपूजिताः,
तानी कृत्याहतानीव विनश्यन्ति समन्ततः।

जहां स्त्री जाति का आदर नहीं होता वह  कुल शीघ्र नष्ट हो जाते हैं। जिस कुल में बहू-बेटियां क्लेश को भोगती हैं वह कुल नष्ट हो जाता  है।  जहां बहू-बेटियों को किसी तरह का दुख नहीं भोगना पडता है कुल बढ़ता ही जाता है।  सम्मानित ना होने पर बहू बेटियां जिन घरों को कोसती हैं उन घरों का हर तरह से नाश होता है।  केवल वही घर फल-फूलता है जिस घर में स्त्रियों का आदर होता है।

दुराचारो हि पुरुषो लोकेभवति निन्दितः,
दुखभागी च सततम व्याधितोऽल्पायुरेवच।
सर्वलक्षण-हीनोऽपि यः सदाचार-वान्नरः,
श्रद्दधानोऽनसूयश्च शतं वर्षाणि जीवति।

दुराचारी पुरूष संसार में सज्जनों के मध्य में निन्दा को प्राप्त होता है। वह दुःखभागी और निरन्तर व्याधियुक्त होकर अल्पायु हो जाता  है।  दुराचारी पुरुष सर्वदा दुखी रहता है। जो सब लक्षणों से हीन होने पर भी जो सदाचारी व  श्रद्धालु रहता है वह 100 वर्ष तक जीता है और दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त करता है।

नामुत्र हि सहायार्थम पिता माताचतिष्ठतः,
न पुत्र दारा न ज्ञाति धर्मः तिष्ठत केवलः।
एकः प्रजायते जन्तुः एकः एव प्रलीयते।
एकः अनुभुङ्कते सुकृतम एकः एवच दुष्कृतम।

व्यक्ति का धर्म ही उसके काम आता है। बाकी उसका साथ कोई नहीं देता।  परलोक में माता पिता, पत्नी, पुत्र कोई भी काम नहीं आता।  केवल धर्म ही काम आता है।  इसलिए धर्म का पालन करना चाहिए। जीव दुनिया में अकेला ही आता है और अकेला ही जाता है।  पाप-पुण्य का फल भी अकेले ही भोगना पड़ता है।  अतः केवल धर्म ही इस धरती के बाद काम आता है।

मृतं शरीरम उत्सृज्य काष्ठ लोष्ठ सम क्षितौ,
विमुखा बांधवा यान्ति धर्मस्तमनु गच्छति।
तस्माद धर्मं सहयार्थं नित्यं संचिनु याच्छ्नैः,
धर्मेण हि सहायेन तमसरति दुस्तरम।

ऋषि धर्म की व्याख्या करते हुए बताते हैं कि, मृत शरीर को मिट्टी के ढेले के समान धरती पर छोड़कर, बंधु बांधव मुंह फेर कर चले जाते हैं।  केवल धर्म ही उसके पीछे-पीछे जाता है।  इसलिए अपनी सहायता के लिए सदा धर्म का संग्रह करना चाहिए।  व्यक्ति के मरने के बाद उसके प्राणों के साथ कोई नहीं जाता।  केवल धरती पर किए हुए उसके कर्म तथा उसका पालन किया हुआ धर्म ही उसका साथ देता है।

सर्वभूतेषु चात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि।
समं पश्यन्नात्मयाजी स्वाराज्यमधिगच्छति॥

जो स्वयंम को अन्य सभी जीवों में और अन्य सभी जीवों को स्वयंम में पहचानता है, वह समत्व प्राप्त कर लेता है और ब्रह्मत्व को प्राप्त हो जाता है, अर्थात सर्वशक्तिमान ईश्वर में आत्मसात हो जाता है।

ऐसी और भी ज्ञानपूर्ण बातें मूल मनुस्मृति में महर्षि मनु ने लिखी थी। ब्राह्मणवाद की घटिया सोच के कारण मनु बदनाम हो गए। किसी को मनुस्मृति जलाना हो तो बेशक जलाएं लेकिन एक बार वो पुस्तक पूरी पढ़ लें फिर जलाएं।

यही सनातन हिंदू धर्म की विशेषता है कि हिंदू धर्म की पुस्तकों में लिखी हुई किसी भी बात का आप खंडन कर सकते हैं।
 

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